दिव्य विचार: शुभ संकल्प लें पर पालन भी करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: शुभ संकल्प लें पर पालन भी करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि तुम यदि मन में शुभ संकल्प लेते हो तो केवल शुभसंकल्प ले लेने मात्र से नहीं चलेगा। जैसे धरती पर बीज बो देने मात्र से वह अंकुरित नहीं होता है, उसमें खाद, पानी भी देना पड़ता है। सींचना, निदाई, गुड़ाई, रख-रखाव भी करना पड़ता है। तब कहीं बोया हुआ बीज अंकुरित होकर पल्लवित होता है, पुष्पित होता है, विशाल वृक्ष का रूप धारण करता है। उसी तरह अपने शुभसंकल्पों को भावनाओं का सिंचन दो, जिससे तुम्हारे संकल्प पुष्ट होगें, चरित्र निर्मल होगा। जैन ग्रन्थों में बताया गया है। कि पाँच व्रतों की रक्षा के लिये पच्चीस भावनायें हैं। इनके सिंचन से ही संकल्पों में दृढ़ता आती है। बन्धुओ ! जब हम इस मनोविज्ञान की आधुनिक मनोविज्ञान से तुलना करते हैं, तो दोनों में बहुत समानता पाते हैं। मनोविज्ञान के अनुसार चौदह मूल वृत्तियाँ होती हैं। इन मूल वृत्तियों से हर प्राणी कमोवेश प्रभावित रहता है। ये वृत्तियाँ हैं-भोजन की वृत्ति, पलायन की वृत्ति, विकर्षण की वृत्ति, बच्चों को खिलाने की वृत्ति, आत्म रक्षण की वृत्ति, प्रकाशन की वृत्ति, भय की वृत्ति, निद्रा की वृत्ति आदि-आदि ये सब मूल प्रवृत्तियाँ स्थायी नहीं हैं, इनमें परिष्करण संभव है। अतः अपने चिन्तन से इनका परिमार्जन एवं उदात्तीकरण कर फिर अपने जीवन में रूपान्तरण कर सकता है। मनुष्य मनोवैज्ञानिक वृत्तियों के रूपान्तरण को चार प्रकार से मानते हैं 1. दमन, 2. विलयन, 3. मार्गान्तरीकरण और 4. शोधन। दमन इसमें सबसे पहला उपाय है दमन । प्राथमिक अवस्था में कोई दुर्वृत्ति उभरे तो उसे वहीं रोक दिया जाय, किन्तु आजकल मनोवैज्ञानिक दमन को हानिकारक मानते हैं। जबकि इसके फायदे बहुत हैं। यदि दुष्प्रवृत्ति मन में उठती है और उसे शुभ संकल्प के द्वारा रोक दिया जाता है, तो उन दुष्प्रवृत्तियों को जीतने के लिये यह दमन सहायक बन जाता है। विलयन विलयन के अन्तर्गत दो रूप होते हैं। पहला निरोध, दूसरा विरोध । निरोध का मतलब है कि चित्त में भावनाओं को उभरने ही मत देना, उसे उत्पन्न ही नहीं होने देना। उसे वहीं रोक देना।