दिव्य विचार: छोटे से जीवन में लगेज कम रखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: छोटे से जीवन में लगेज कम रखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बंधुओ ! जीवन के इस सफर (यात्रा) में आनंद की अनुभूति करना चाहते हो तो अपना लगेज कुछ कम करो, लगेज घटाओ, नहीं तो परेशान हो जाओगे। ये जीवन की सच्चाई है जितना अपने पास भार जोड़ोगे जाते वक्त उतने परेशान होंगे। दिमाग को निर्धार रखो, अपनी आसक्ति को मंद करो, जीवन का पथ तभी और केवल तभी प्रशस्त होगा, नहीं तो क्या भरोसा कहाँ ब्रेनस्टोक हो जाए, कोमा में चले जाओ, पैरालिसिस का अटैक हो जाए, बिस्तर पर सड़ते रहो। और न जाने क्या-क्या परेशानियाँ तुम पर हावी हो जाएँ। आसक्ति-मुक्त जीवन जियो। कर्म का कब कैसा उदय आ जाए, पता नहीं। न लेकर आए हो, न लेकर जाओगे ये यथार्थ है। जीवन में जो मेरे कर्म के अनुकूल होगा वही संयोग मुझे मिलेगा, ये जीवन का यथार्थ है। मैं अपने बाल-बच्चों की बात सोचूँ तो आज मैं अपने पुण्य का खाता हूँ, मेरे बच्चे भी अपने पुण्य का खाएँगे। मैं किसके लिए परेशान हूँ? पूत सपूत तो का धन संचय । पूत कपूत तो का धन संचय ॥ यदि ये बात तुम्हारे मन में बैठ गई तो सन्तोष स्वभावतः प्रकट होगा। दूसरी बात भावोन्मुखी दृष्टि रखो। भावोन्मुखी दृष्टि यानि जो तुम्हारे पास है बस तुम उसे देखो, जो नहीं है उसे मत देखो। सुखी होने का एक ही रास्ता है- जो है उसे पसंद करो और दुखी होने का एक ही रास्ता है जो नहीं है उसको देख लो। तुम्हारे पास जो है यदि तुम उसे देखना शुरु कर दो तो मन में असंतोष नहीं आएगा और जो नहीं है उसे देखोगे तो मन में कभी सन्तोष नहीं आएगा। अगर तुम्हारे पास लाख हैं और तुम्हारे लिए पर्याप्त हैं तो संतोष रखो लेकिन मनुष्य को अपना लाख नहीं दिखता, सामने वाले का दस लाख दिखता है। दस लाख पाने की आकांक्षा में वह एक लाख का सुख भोगने की जगह नौ लाख के अभाव का दुख भोगना शुरु कर देता है। अभाव को मत देखो, भाव को देखो। जो तुम्हारे पास है उसे देखो। भावोन्मुखी दृष्टि होते ही संतोष की सृष्टि होगी और अभावोन्मुखी दृष्टि में दुख आता है।