दिव्य विचार : कोई अपशब्द बोले तो मौन रहो - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार : कोई अपशब्द बोले तो मौन रहो - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि समस्याएँ दो प्रकार की हैं- शारीरिक समस्याएँ और मानसिक समस्याएँ। शारीरिक समस्या, समस्या नहीं है; असली समस्या मानसिक समस्या है। मैं आपसे कहता हूँ इस सारी समस्या का समाधान तपस्या है। कैसे? हमारे यहाँ तीन प्रकार के तप बताए हैं। महराज ! हमने तो बारह तप सुने हैं। बारह तप भी हैं; मैं आपसे इन तप से भिन्न बात करना चाहता हूँ। तप तीन प्रकार के हैं- 1. शारीरिक तप 2. वाचिक तप और 3. मानसिक तप। व्रत करना, त्याग करना, उपवास करना, तपस्या करना आदि ये सब शारीरिक तप है। मैंने आपको छुट्टी दी तुमसे शारीरिक तप नहीं बनता तो मत करो। वाचिक तप करो। वाचिक तप मतलब वाक्- संयम। तुमसे कोई अपशब्द बोले तो उस समय मौन रख लो; तपस्या हुई कि नहीं हुई? आप उपवास तो कर सकते हो पर किसी की बात को बरदाश्त (सहन) नहीं कर सकते। भोजन छोड़ना सरल है पर किसी के दुर्वचन को सहना बहुत कठिन है। सन्त कहते हैं ये तपस्या है। इस तपस्या से समस्या का समाधान है क्योंकि किसी ने आपसे अपशब्द कहा, उस अपशब्द ने आपके दिमाग में चक्कर काटना शुरु कर दिया, सौ प्रकार के विकल्प आने लगे, टेंशन हो गया, उसने मुझे ऐसा बोल दिया। उसने मुझे अपमानित कर दिया, वह मुझे नीचा दिखाने की सोचता है, देखता हूँ, बड़ी औकात बढ़ गई है उसकी। अच्छा ! उसने मुझे गधा कह दिया, मुझे गधा कहता है, बहुत भाव बढ़ गए हैं, एक दिन में धूल चटा दूँगा। ऐसी पटकनी दूँगा कि उठ नहीं पाएगा; मुझे गधा कहता है। सामने वाले ने एक बार गधा कहा और तुमने खुद को कितनी बार गधा बना दिया? जैसे शान्त सरोवर में किसी ने एक कंकड़ फेंका और वह कंकड़ वलय दर वलय बनाते-बनाते पूरे सरोवर को घेर लेता है। तुम्हारे कान में एक शब्द पड़ा, तुम उसे पकड़कर बैठ गए और उसने तुम्हें नीचे से ऊपर तक हिला दिया।