दिव्य विचार: कमाएं धन का सदुपयोग करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि तुम देखो, तुम्हारा जीवन कैसा है? समुद्र जैसा है या नदियों जैसा है? यदि तुमने नदी को अपने जीवन का आदर्श बनाया तो मानकर चलना तुम्हारे अन्दर मिठास घुलेगी और यदि तुम समुद्र का अनुकरण करोगे तो तुम्हारे जीवन में खारापन बना रहेगा। खारेपन से बाहर आना चाहते हो तो मिठास अपनाओ। मिठास अपनाओ और देखो समुद्र की स्थिति भी। समुद्र के पानी को जब सूरज अवशोषित करता है तो वही पानी बादल में परिवर्तित हो जाता है और बादल जब बरसते हैं तो पानी मीठा होता है। उसमें भी देखो प्रकृति कितना बड़ा संदेश हमें देती है, बादल जब तक अपने साथ पानी भरे रखते हैं, काले दिखते हैं और बादल जब पानी छोड़ देते हैं, सफेद हो जाते हैं, उनमें भी शुभ्रता आ जाती है। बादलों में पानी भरा है, बादल काले हैं, बादल ने पानी छोड़ा, बादल सफेद, तुम देखो तुम्हारी दशा क्या है? कजरारे बादल हो या शुभ्र स्वच्छ मेघ। । बादल में यदि पानी है तो रखने के लिए नहीं है, बाँटने के लिए है, प्रकृति को हरी-भरी बनाने के लिए है, धरती को शस्य-श्यामला बनाने के लिए है। उसे छोड़ दो तुम्हारे जीवन में उज्वलता और पवित्रता आ जाएगी। अपनी मानसिकता को टटोलिए, थोड़ा सोचिए। धन जोड़ने के प्रति तुम्हारा जितना उत्साह होता है, छोड़ने में वैसी उमंग है? जितनी तत्परता से तुम कमाते हो, जब भी कमाई होती है, आँखें चमक जाती हैं लेकिन जब छोड़ने की बारी आती है तब कैसी-कैसी मानसिकता होती है, संत कहते है तुम जिस अनुपात से कमाते हो, उसी अनुपात से लगाने का मनोभाव रखों। क्यों? तुम्हारे द्वारा जोड़ा गया धन यहीं छूट जाएगा। यदि तुम उसका सदुपयोग करोगे तो वह स्व-पर के कल्याण में आएगा। जोड़ना बुरा नहीं है। जोड़कर रखे रहना बुरा है।