दिव्य विचार: संतान कुछ गलत करे तो नसीहत दें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि माँ, माँ बने वह कुमाता न बने। माता, माता तभी रहेगी जब तक कि उसका मातृत्व सुरक्षित है। मातृत्व रखे, ममत्व नहीं रखे। मातृत्व और ममत्व में क्या अन्तर है? मातृत्व का मतलब है अपनी सन्तान को स्नेह भाव से सींचते रहना और ममत्व का मतलब है उसके प्रति मोह-ममता रखकर उसके सब प्रकार के मनोभाव पूरा करना और उसके संस्कारों को बिगाड़ डालना। माँ में मातृत्व होगा तो सन्तान को सुसंस्कार देगी और माँ केवल ममता से भरेगी, उसके ममत्व से भरेगी तो उसके हर अच्छे-बुरे कार्य में अपना साथ देगी, उसकी बुराईयों को ढाकने की कोशिश करेगी, उसे गलत मार्ग में आगे बढ़ाएगी और नतीजा उसका जीवन बर्बाद होगा । आजकल ऐसा घर परिवारों में हो रहा है। कई बार माँ अपने ममत्व के कारण अपनी सन्तान की गलतियों को छुपाए रखती है, अपने पति को भी नहीं बताती, पिता को भी उसकी भनक नहीं लगने देती और अन्दर ही अन्दर नासूर पलता रहता है, पलता रहता है और जब वह पक जाता है तब तो पानी सिर से निकल जाता है, कुछ नहीं रह पाता। तुम्हारा यह ममत्व तुम्हारे और तुम्हारी सन्तान दोनों के भविष्य को अन्धकारमय बनाने वाला है। ममत्व नहीं रखना चाहिए, मातृत्व के सीरे से सिंचित करो लेकिन सन्तान यदि कुछ गलत करे तो उसे समय-समय पर नसीहत दो, सही सीख दो ताकि वह कोई गलत कार्य करने पर उतारू न हो सके। यह माँ की एक जिम्मेदारी है क्योंकि ममत्व कि अधिकता सन्तान को बिगाड़ देती है। जब एक बार सन्तान बिगड़ जाती है तो बात को सम्हालना बहुत मुश्किल हो जाता है। यह ममता दुःख की खान है। ऐसा ममत्व अपने ऊपर कभी हावी मत होने देना जो सन्तान को बिगाड़ दे ।