फर्जी श्रमिकों के नाम पर आहरित कर लिए 11 लाख 30 हजार रुपए की राशि

रीवा | सिरमौर नगर परिषद में करोड़ों रुपए की हेराफेरी की गई है। बता दें कि सिरमौर नगर परिषद ने 11 लाख 30 हजार रुपए की राशि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को बांटना दर्शाया है। जब अर्थवर्ष 2019-20 में आॅडिट हुई तब सारी तिकडमबाजी धरी की धरी रह गई। बता दें कि रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि विभिन्न श्रमिकों को दैनिक वेतन भोगी के रूप में उनसे आवेदन पत्र लेकर एक साथ राशि का भुगतान किया गया है। इतना ही नहीं फायर गाड़ियों की फर्जी मरम्मत कराकर चहेतों को लाभान्वित करना, कई भुगतान संदिग्ध और अप्रत्याशित पाया जाना के साथ ऐसे कई आर्थिक गड़बड़ी की गई है जिसका बिंदुवार रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।

गौरतलब है कि सिरमौर नगर परिषद में सबसे बड़ी वित्तीय अनियमितता तो यह है कि बैंक पासबुक और लेखापाल कैशबुक में 79 लाख का अंतर है। वहीं चहेते ठेकेदारों को ज्यादा भुगतान कर देना, वार्षिक लेखा तैयार न करना, खातों में बार-बार काटछाट करना, अर्थवर्ष 2019-20 में पदस्थ रहे अधिकारियों को कठघरे में लाकर खड़ा कर देता है। बता दें कि यह मामला अभी स्थानीय निधि संपरीक्षा और नगर परिषद अधिकारी के बीच में है। जिसे प्रशासन की नजरों में आने की जरूरत है। अगर प्रशासनिक जांच बैठाई जाए तो बड़े-बड़े अधिकारी नप जाएंगे।

पता चला है कि सिरमौर नगर परिषद ने सिर्फ साल 2019 में फर्जी दैनिक वेतन भोगियों का नाम लिखकर कुल 11 लाख 30 हजार रुपए सरकारी खजाने से निकाल लिए। जब जांच हुई तो यह पाया गया कि कर्मचारियों के नाम पर निकाली गई राशि अवैध और अनियमित है। स्थानीय निधि संपरीक्षा संयुक्त संचालक ने नगर परिषद अधिकारी को उक्त राशि वसूल करने का निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2019 में कुल 19 बार 50-50 हजार रुपए का भुगतान किया गया है। जिसमें किसी में आरटीजीएस नहीं लगाया तो कहीं उन कर्मचारियों का नाम ही नहीं लिखा जिन्हें भुगतान किया गया है। जांच में यह पाया गया कि यह भुगतान अनियमित है और वसूली योग्य है। 

47 लाख 32 हजार की किराया राशि अब तक नहीं कर पाए वसूल
आॅडिट रिपोर्ट से पता चला है कि विगत कई वर्षों की राजस्व मांग अत्यधिक बकाया है और दिनों-दिन मांग बढ़ती ही जा रही है। बता दें कि संपत्ति कर, सामेकित कर, शिक्षा उपकर, विकास कर, जल कर और भूमि-भवन किराए का मिलाकर 47 लाख 32 हजार 120 रुपए वसूली योग्य है मगर अधिकारियों ने बीते वर्षों में इन करों को वसूल करना जरूरी नहीं समझा। बता दें कि संपत्ति कर का 10 लाख 31 हजार 989, सामेकित कर का 16 लाख 69 हजार 77, शिक्षा उपकर का 5 लाख 6 हजार 325, विकास कर का 2 लाख 88 हजार 50, जलकर का 8 लाख 15 हजार 75 एवं भूमि-भवन का 4 लाख 90 हजार 804 रुपए बकाया है। इतना ही नहीं आॅडिट में यह भी पाया गया कि नगर परिषद द्वारा पिछले तीन साल से दुकानों का किराया नहीं बढ़ाया गया और अब तक मौजूद किराए की दुकानों से वसूली भी नहीं हुई। जिसकी राशि 4 लाख 35 हजार 520 रुपए है।

वाहनों की मरम्मत के नाम पर भी लाखों का घपला
बताया गया है कि संस्था द्वारा किराए के वाहन कर्मचारियों, अधिकारियों एवं अध्यक्ष द्वारा उपयोग किया गया और भुगतान भी किया गया। मगर वाहन लॉगबुक किराया पंजी एवं सक्षम स्वीकृति संबंधी नस्ती तथा वाहन टैक्सी परमिट आदि संलग्न नहीं किए। जिसके चलते आॅडिट टीम ने 78 हजार 724 रुपए के भुगतान को असत्यापित करार दिया। वहीं फायर गाड़ी की मरम्मत कार्य के लिए अवैध रूप से 50 हजार रुपए का भुगतान किया गया। पता चला है कि संस्था द्वारा मरम्मत कार्य हेतु चालक विनोद कुशवाहा को उसके खाते में 50 हजार रुपए का आरटीजीएस किया। जिसने न्यू केसरी रीवा को वाहन मरम्मत के लिए नकद राशि और रसीद ली।

जबकि न्यू केसरी द्वारा दिए गए कोटेशन में अग्रिम भुगतान की कोई शर्त नहीं थी। आॅडिट रिपोर्ट ने इस 50 हजार रुपए के भुगतान को संदिग्ध और अवैध माना है और चालक विनोद कुशवाहा से वसूली के निर्देश दिए हैं। इतना ही नहीं 2019-20 के व्यय प्रमाणकों के परीक्षण में यह पाया गया कि संस्था के फायर गाड़ी का मरम्मत कार्य वर्ष भर कराया मगर व्यय सीमा का ध्यान नहीं रखा गया। व्यय राशियों से शासकीय राशियों की कटौती नहीं की गई, न ही मरम्मत पंजी, लॉग बुक में प्रविष्टि की गई। जांच में यह खुलासा हुआ कि संस्था द्वारा 2 लाख 29 हजार 815 रुपए निर्धारित सीमा से अधिक व्यय की गई है जिसे वसूल किया जाना चाहिए।