देशी भाषाओं को सम्मान देने स्थानीय बोली में कार्यक्रम आयोजित करेगा संघ
सतना | यदि आने वाले दिनों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता व पदाधिकारी आपसे नमस्ते व प्रणाम के स्थान पर ‘राम-राम ’ व ‘पायलागी’ करते नजर आएं तो हैरान मत होइएगा क्योंकि देशी भाषाओं को सम्मान देने अब आरएसएस अपने कार्यक्रम स्थानीय बोली में आयोजित करने जा रहा है। जानकारों का मानना है कि आरएसएस का यह प्लान प्रदेश व देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों को भावनात्मक तौर पर संगठन से जोड़ने का काम करेगा ।
संगठन ने छपवाए 'बोलउवा पत्र'
आगामी 14 मार्च को आरएसएस की सतना शाखा प्रागट्य कार्यक्रम आयोजित कर रही है। इसके लिए कार्यकर्ताओं को देने के लिए जो आमंत्रण कार्ड (बोलउवा पत्र) छपवाए गए हैं उन्हें भी बघेली भाष में मुद्रित कराया गया है। संस्कार मैरिज गार्डन में आयोजित होने वाले प्रागट्य कार्यक्रम में सहप्रांत प्रचारक बृजकांत मुख्य वक्ता और रिटायर्ड अपर कलेक्टर शंकरलाल प्रजापति मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करेंगे। प्रागट्य कार्यक्रम में साल भर सतना नगर अंतर्गत चली गतिविधियों पर चर्चा के साथ आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई जाएगी।
वार्षिकोत्सव की तरह है प्रगट कार्यक्रम
संघ से जुड़े जानकार बताते हैं कि प्रगट कार्यक्रम एक प्रकार से संगठन के वार्षिकोत्सव कार्यक्रम की तरह है जिसमें साल भर की गतिविधियों का प्रदर्शन किया जाता है। इस अवसर पर दंड चलाने, नियुद्ध, दंडयोग, पद विन्यास जैसी गतिविधियों का प्रदर्शन किया जाएगा। इस दौरान संघ स्थानीय स्तर पर वितरित किए जाने वाले साहित्य को भी बघेली भाषा में ही मुहैया कराएगा। संघ के इस निर्णय का शहर के बुद्धजीवी तबके ने स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि स्थानीय बोलियों का इन कवायदों से न केवल अस्तित्व बचा रहेगा बल्कि देशी भाषाएं प्रतिष्ठित भी होंगी।
बुद्धिजीवी वर्ग पर निशाना
स्थानीय भाषा स्थानीय लोगों को आपस में जोड़ने में अहम भूमिका निभाती है। खासकर बुद्धिजीवी वर्ग स्थानीय भाषा को लेकर संवेदनशील होता है जबकि स्थानीयता क्षेत्रीय लोगों को प्रभावित करती है। ऐसे में आरएसएस के इस निर्णय को लोगों को जोड़ने के लिहाज से मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। संगठन ने निर्णय लिया है कि कार्यक्रम में स्थानीय कवि, लेखक, साहित्यकार, रिटायर्ड अधिकारियों, शिक्षकों के अलावा शहर की मातृशक्ति को आमंत्रित किया जाएगा ।
इसलिए जमीनी पकड़ खो रही कांग्रेस
विगत एक दशक में भाजपा का संगठनात्मक विस्तार कई गुना हुआ है और इसी के साथ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की जमीनी पकड़ ढीली हो रही है। इसका एक बड़ा कारण संघ के ऐसे कार्यक्रम हैं जो स्थानीय लोगों को संघ की विचारधारा से जोड़ने का काम करते हैं। बेशक संघ कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं करता लेकिन भाजपा की आत्मा कहा जाने वाले संघ के कार्यक्रमों का सीधा लाभ भाजपा को मिलता है। अब संघ ने स्थानीय भाषा को सम्मान देकर स्थानीय लोगों का मन जीतने का जो फार्मूला तैयार किया है निश्चय ही इसे प्रभावी माना जा रहा है।
विडंबना की बात है कि देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के पास अपनी विचारधारा से आम जनमानस को जोड़ने वाले कोई कार्यक्रम नहीं हे। कभी कांग्रेस लिए जनमत तैयार करने का जिम्मा संभालने वाला कांग्रेस सेवादल भी अब केवल रस्मी संगठन बनकर रह गया है। बहरहाल आरएसएस ने स्थानीय लोगों में अपनी पैठ बनाने के लिए स्थानीयता को लेकर जो दांव खेला है, वह कितना कारगर होगा, यह तो अभी वक्त के गर्भ में है लेकिन संघ के इस कदम की चर्चा आम जनमानस के बीच शुरू हो गई है।