कर्मचारियों की उदासीनता के चलते परेशान हो रहे छात्र
रीवा | अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में जितनी भी सेवाओं और योजनाओं के लिए समय सीमा तय की गई है, उनके हिसाब से काम बिल्कुल भी नहीं हो पा रहा है। जिन कार्यों को निपटाने में विश्वविद्यालय प्रशासन को एक से दो दिन लगने चाहिए, उसमें दो से तीन महीने लग रहे हैं। ऐसे में न सिर्फ छात्रों का मनोबल टूटता है बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की छवि भी धूमिल होती है।
गौरतलब है कि लोक सेवाओं के प्रदान गारंटी अधिनियम के तहत कार्यों को पूरा करने की समय सीमा दो दिन है। मगर ऐसे प्रकरण को पूरा करने में विवि कई गुना ज्यादा वक्त लेता है। जैसे कि नामांकन, अंकसूची, डिग्री प्राप्त करना, अंकसूची में सुधार जैसी दर्जनों सेवाओं को लोक सेवा गारंटी के तहत शामिल किया गया है। देखा जाए तो ज्यादा से ज्यादा ऐसे प्रकरणों में विवि को पांच दिन का समय लग सकता है। मगर अधिकारियों, कर्मचारियों की लापरवाही से यह संभव नहीं हो पा रहा है।
लंबित प्रकरणों की नहीं भेजी जानकारी
लोक सेवा गारंटी अधिनियम के अंतर्गत लंबित मामलों के अलावा आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी वर्षों बाद भी आवेदकों को नहीं मिल पाती है। खासतौर पर उत्तरपुस्तिका के मूल्यांकन में विश्वविद्यालय इस संबंध में कतई गंभीर नहीं है। वजह यह भी है कि हर कम अंक प्राप्त करने वाला विद्यार्थी और फेल होने वाले छात्र आरटीआई के तहत उत्तरपुस्तिका की फोटोकॉपी की मांग आरटीआई से करते हैं जिसके कारण विश्वविद्यालय सभी प्रकरणों को नजरअंदाज कर देता है।
दूरदराज से आने वाले छात्र होते हैं मायूस
विश्वविद्यालय के प्रशासकीय भवन में हमेशा एक दर्जन से अधिक छात्र कर्मचारियों के आने और अपने काम पूरा होने के इंतजार में घंटों बैठे रहते हैं। ज्यादातर विद्यार्थी अंकसूची सुधार, मार्कशीट प्राप्त करने, नामांकन के संबंध में विश्वविद्यालय आते हैं। मगर संभाग के कई छोरों से अपना काम निपटाने के लिए विश्वविद्यालय आने वाले छात्रों को मायूस लौटना पड़ता है।
विश्वविद्यालय भले ही अपनी समस्या से छुटकारा पाना चाह रहा हो परंतु अभ्यर्थी अपने हक से वंचित हो रहे हैं। देखा जाए तो लोक सेवा गारंटी अधिनियम और सूचना के अधिकार के तहत विश्वविद्यालय में दो सौ से अधिक आवेदन लंबित पड़े हुए हैं। वर्षों से इन प्रकरणों को निपटाया नहीं गया है। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि आरटीआई को विश्वविद्यालय गंभीरता से नहीं लेता।
मिली जानकारी के मुताबिक कई लोगों ने विश्वविद्यालय में हो रहे निर्माण कार्य एवं ठेकेदारों द्वारा कराए गए कार्यों का हिसाब मांगने के लिए आरटीआई लगाई तो जरूर है मगर विश्वविद्यालय उन्हें जवाब नहीं दे रहा है। ठीक इसी प्रकार उत्तरपुस्तिकाओं के पूरे मूल्यांकन के लिए छात्रों की सुविधा के लिए सूचना के अधिकार की अवहेलना करने में भी प्रबंधन कोई कसर नहीं छोड़ रहा।