दिव्य विचार: तुम्हारे दुखों का कारण है भ्रम- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: तुम्हारे दुखों का कारण है भ्रम- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बहुत सुन्दर अभिव्यंजना है। गहरी प्रेरणा है। कबीर कह रहे हैं कि जो तुम दुःखी हुए, वह अपने पर यानी स्वरूप को विसरने के कारण हुए। तुम्हारे दुःख का कारण कोई और नहीं, तुम्हारे मन का भ्रम है। भ्रम टूटते ही दुःख सुख में परिवर्तित हो जाएगा, अशान्ति शान्ति में परिवर्तित हो जाएगी और अवसाद आनन्द में बदल जाएगा। पहचानो ! उदाहरण दिया है एक काँच के महल में कुत्ता घुस गया। ऊपर काँच, नीचे काँच, आगे काँच, पीछे काँच, दाएँ काँच, बाएँ काँच, सब तरफ काँच ही काँच। काँच की दीवारें, काँच की छत, काँच की फ्लोर। अब क्या हुआ? कुत्ता घुस गया। चारों तरफ देखा तो काँच में हजारों कुत्ते दिखे। वह घबड़ा गया। अरे! मैं कहाँ फँस गया हूँ? डर गया। प्रायः इंसान जब डरता है तो सामने वाले को डराने की कोशिश करता है। वह जोर से भौंका। जब उसने भौंका, तो हजारों कुत्ते एक साथ उस पर भौंक पड़े। कहते हैं वह कुत्ता रातभर भौंक-भौंककर मर गया। सुबह जब उस महल का दरवाजा खोला गया तो कुत्ते की लाश पड़ी थी। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि वह सैंकड़ों जगह से क्षत-विक्षत थी। सवाल यह है कि उस कुत्ते को क्षत-विक्षत किसने किया? कोई दूसरा कुत्ता नहीं था, वहाँ तो सिर्फ प्रतिबिम्ब थे। काश ! उस कुत्ते को पता चलता कि यह तो भ्रम है, यथार्थ नहीं है। आराम से सोता, मजे में रहता, लेकिन जो प्राणी भ्रम को यथार्थ मान लेता है, वह कभी भी सुखी नहीं होता है। खरगोश और शेर की कहानी आप सबको पता होगी। इस कहानी के साथ मेरा एक प्रसंग जुड़ा हुआ है। सन् 1987 की बात है। मैं क्षुल्लक अवस्था में था। बण्डा में एक बार गुरुदेव की आज्ञा से हमारा प्रवचन गुरुदेव से पहले हुआ। हमने सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र पर श्रद्धा, विवेक और आचरण से शुरुआत की। हमने विवेक की बात की। उस समय इतना ज्ञान तो था नहीं, विवेक के लिए हमने शब्द प्रयोग किया- समीचीन विवेक और असमीचीन विवेक। विवेक हमेशा समीचीन होता है। जो असमीचीन होता है वह विवेक है ही नहीं।