कक्षाएं प्रारम्भ होने के बाद भी ग्रामीण कॉलेजों में पसरा है सन्नाटा
रीवा | निजी और सरकारी सभी कॉलेज 20 जनवरी से प्रारंभ हो गए हैं। ज्ञात हो कि कोरोना के चलते कॉलेजों में अब तक कक्षाएं नहीं लग रही थीं। मगर शासन के आदेश के बाद इसी माह से कॉलेजी कक्षाएं शुरू हो गई हैं। मगर शासकीय कॉलेजों में अध्ययन अध्यापन की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है।
प्रोफेसरों को 70 से 80 हजार रुपए की तनख्वाह मिलती है मगर वह जिम्मेदारी रत्ती भर की नहीं निभाते हैं। कॉलेज में आकर अटेंडेंस लगाने के बाद वह अपने निजी कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं और पढ़ाई अतिथि विद्वानों के कंधों पर डाल देते हैं। संभाग के बडेÞ कॉलेजों जैसे टीआरएस, मॉडल साइंस, जीडीसी को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर ऐसे कॉलेज हैं जहां न तो विद्यार्थी पढ़ने जा रहे हैं और न ही अध्यापक पढ़ाने। हैरान करने वाली बात यह है कि इन पर निगरानी रखने वाला कोई नहीं है। न ही जिम्मेदार अधिकारियों के निरीक्षण की प्रक्रिया कहीं दिखाई पड़ी। जिसके कारण सीधी, शहडोल, सतना, रीवा एवं अन्य जिलों में संचालित होने वाले सरकारी कॉलेजों में व्यवस्थाओं और अध्ययन अध्यापन को लेकर मनमानी बनी हुई है।
हर माह भेजनी होती है रिपोर्ट
सूत्रों की मानें तो अग्रणी कॉलेज के प्राचार्यों और अतिरिक्त संचालक को हर महीने उच्च शिक्षा विभाग में कॉलेजों के निरीक्षण की जानकारी भेजने का प्रावधान है। मगर अन्य कॉलेजों की जिम्मेदारी जरूरत से ज्यादा कार्यभार से समय निकालना अधिकारियों के लिए संभव नहीं हो पाता है।
अग्रणी प्राचार्य पर आधा दर्जन प्रभार
संभाग के अग्रणी प्राचार्य के कंधों पर आधा दर्जन से अधिक प्रभार दिए गए हैं। कॉलेज की जिम्मेदारी के अलावा ऐसे महाविद्यालय जहां प्राचार्य और नियमित प्राध्यापक तक नहीं हैं वहां के प्रींसिपल की जिम्मेदारी भी अग्रणी प्राचार्य को संभालनी पड़ती है। वर्तमान में मॉडल साइंस के प्राचार्य को अतिरिक्त संचालक की जिम्मेदारियां संभालनी पड़ रही हैं। इस हद तक मिले कार्यभार के चलते काम प्रभावित होना कोई हैरान करने वाली बात नहीं है।