हाल-ए-जिला अस्पताल: अस्पताल में प्रसूताएं हलाकान नदारद रहे गायनी के 'भगवान'
सतना | जिला अस्पताल में मरीज को ओपीडी पर्ची और भर्ती बनवाने के अलावा उपचार के लिए कोई चार्ज नहीं देना है सरकार की कृपा है मरीजों को मुफ्त उपचार देने का वादा है पर है केवल वादा जो सरकार का अमला निभा नहीं रहा है। मोटी रकम अपनी हुनर का शासन से लेना है पर काम न करने की कसम खा रखी है बीमार जन परेशान हो रहे हैं, डॉक्टर रूपी भगवान तक पहुंचने की जद्दोजहद करते हैं बेचारे वहां तक पहुंच नहीं पाते हैं।
ये हालात गायनी के हैं जहां ओपीडी से डॉक्टर नदारद रहते हैं और प्रसूताएं हलाकान होती पूरे अस्पताल में इधर उधर भटकती हैं। न जाने चिकित्सकों को कौन सी बीमारी है कि एक तो ओपीडी से तौबा किए रहते हैं तो यदि पहुंचे भी तो कुर्सी पर लगातार आधा घंटा तक भी नहीं बैठ पाते हैं। जबकि सतना के इस बड़े अस्पताल में गायनी ही एक ऐसा विभाग है जहां 10 डॉक्टर स्त्री रोग के हैं उसके बाद भी सबसे ज्यादा समस्या महिला वो भी प्रसूताओं को है।
सिविल सर्जन से बढ़कर नर्स, बदसलूकी भी करती हैं
जिला अस्पताल में बदइंतजामी है तो व्यवस्थाएं भी हैं कुछ गैर जिम्मेदार स्वास्थ्य अमले के कारण अस्पताल प्रबंधन और सरकार की साख में बट्टा लग रहा है। आलम ये है कि कहने को भले ही अधिकारी सिविल सर्जन हों पर हुकूमत वहां उन स्टाफ नर्सो की चलती है जो यह भूल जाती हैं कि मर्यादा भी कुछ होती है और वो खुद एक महिला हैं। बद सलूकी तो ऐसी जैसे मेडिकल की पढ़ाई में इनका कोर्स रहा हो। डॉ कारखुर साहब! प्रसूताएं उपचार के लिए आती हैं आपके मातहतों की गालियां सुनने नहीं। देखा यह जा रहा है कि 27 नंबर में वर्षो से कुछ महिला स्टाफ तैनात है जो वार्ड में अपनी बादशाहत बना रखी हैं इनका रोटेशन क्यों नहीं...? काम करना ड्यूटी है या बदसलूकी करना ये तो अस्पताल प्रबंधन ही तय करे। हालांकि सोमवार को भीड़ और बदइंतजामी की जानकारी प्रशासक इकबाल सिंह को लगी तो मौके पर पहुंच व्यवस्थाओं को ठीक कराया।
गाहे-बगाहे बैठते रहे डॉक्टर
जिला अस्पताल में अल सुबह 9 बजे से डॉक्टरों को ओपीडी में बैठना है और कुछ डॉक्टर हैं भी जो सुबह 9 से साढ़े 9 के बीच ओपीडी में बैठ जाते हैं तो जिनको सर्जरी करना है या सीजर आॅपरेशन करना है वो पहुंच जाते हैं पर ऐसे गुर कुछ ही में पाए जाते हैं। बात गायनी ओपीडी 27 नंबर की करें तो यहां गाहे-बगाहे ही डॉक्टर मिलते हैं वो भी पलक झपकते मोहतरमाएं अपना बैग टांग चलते बनती हैं। सोमवार को भी हाल ऐसे ही रहे। डॉ सुनील पांडे सीजर आॅपरेशन में रहे तो गायनी की और सीनियर डॉक्टरों में किसी के भी दीदार न हुए। प्रसूताएं भटकती रहीं और इस बीच एक नए डॉक्टर पहुंचे महज 10 मिनट का समय दिया और चलते बने। इसके बाद कुर्सी मरीजों को मुंह चिढ़ाती रही, थोड़ी देर में वहां डॉ भूमिका जगवानी पहुंची मरीजों को देखा और गर्भवती महिलाओं की जांच करने लगी पर ज्यादा देर तक ये भी न बैठ सकीं, हालात फिर से जसके तस हो गए।
सोमवार को प्रसूताओं की भीड़ भी जिला अस्पताल में बेकाबू रही, तकरीबन सैकड़ो की तादात में प्रसूताएं ओपीडी के दरवाजे पर डटी रहीं लेकिन उनको उपचार मुहैया नहीं हो रहा था और वजह थी कि डॉक्टर ओपीडी में कभी आये तो कभी चलते बनें और मरीज अपनी बारी का इंतजार करते वहीं का वहीं। सुबह से इंतजार में दोपहर के 12 बज गए और हालात नहीं सुधरे इसके बाद तो एक महिला डॉक्टर पहुंची थोड़ी देर में दोनो ंओर 27 नंबर के दरवाजे बंद करा दिए गए।