दिव्य विचार : मर्म को जाने बिना भ्रम टूटता नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि भ्रम टूटने से धर्म की वास्तविक शुरुआत होती है। मर्म को जाने बिना भ्रम टूटता नहीं, इसलिए भ्रम तोड़ने के लिए मर्म का ज्ञान होना जरूरी है, यथार्थ का बोध होना जरूरी है। लेकिन मर्म की पहचान हर किसी को नहीं होती। संसार के अधिकांश प्राणी भ्रम में जी रहे हैं और सब तरफ भ्रमतापूर्ण निमित्त भी हमारे सामने रहते हैं। इस भ्रम को तोडने के लिए हमें उनके सम्पर्क और सान्निध्य में जाने की आवश्यकता है, जिन्होंने यथार्थ को जाना है और पाया है। सम्यग्दर्शन की उपलब्धि के लिए सबसे पहले हमसे कहा गया कि यदि तुम अपने भीतर के भ्रम को तोड़ना चाहते हो तो निभ्रान्त स्वरूप को प्राप्त करने वाले सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की उपासना करो । देव-शास्त्र-गुरु के प्रति श्रद्धा रखे बिना सम्यग्दर्शन की भूमिका नहीं बन सकती। देव का स्वरूप, शास्त्र का स्वरूप और गुरु का स्वरूप सदैव हमारे हृदय में अकिंत रहना चाहिए। फिर उनके प्रति श्रद्धा हो; जो हमारे लिए कल्याणकारी हैं। आज मुझे बात करनी है कि देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा से हमारा भ्रम कैसे टूटता है? श्रद्धा भ्रम को कैसे तोड़ती है? एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल है- महाराज ! केवल श्रद्धान करेंगे तो भ्रम कैसे टूटेगा? और श्रद्धान भी दूसरे पर। आपने कहा कि शरीर से भिन्न आत्मा का बोध करो, आत्मा की पहचान करो, शरीर में आत्मा की भ्रान्ति रहेगी तो जीवन में सुखी नहीं रहोगे। देव, शास्त्र और गुरु यह भ्रम कैसे तोड़ेंगे? उनकी श्रद्धा से यह भ्रम कैसे टूटेगा? आपने कहा- पर में सुख मानना भ्रम है, इनकी श्रद्धा से मेरा भ्रम कैसे टूटेगा? आपने कहा- नश्वर को शाश्वत मानना भ्रम है तो इनकी श्रद्धा मेरे इस भ्रम को कैसे तोड़ेगी? और आपने कहा- पर को अपना मानना भ्रम है तो इनकी श्रद्धा से मेरी यह मान्यता कैसे बदलेगी ? यह बहुत महत्त्वपूर्ण सवाल है।