दिव्य विचार: अपनी विकृतियों का शोधन करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: अपनी विकृतियों का शोधन करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बंधुओ ! मैं आपसे केवल इतना कहना चाहता हूं संसार में दो तरह के प्राणी है-एक वे जो प्रतिमा की तरह पूजे जाने योग्य होते है और दूसरे वे जो खंबे की तरह हमेशा खड़े रहते हैं। अपने भीतर झांककर देखो, तुम्हारा जीवन खंबे जैसा है या प्रतिमा जैसा है? खंबे को प्रतिमा बनाना है तो उसके लिए तुम्हे तपस्या करनी होगी साधना करनी होगी, आराधना करनी होगी। अपने आपको निखारो, अपने भीतर की विकृतियों का शोधन करो। तुम्हारे भीतर के विकारों का जितना शमन होगा, जीवन में उतना निखार आएगा। शक्ति, आसक्ति, विकृति और प्रकृति को साथ-साथ लेकर चलो। अपने लक्ष्य, प्रकृति तक जाना है तो अपनी शक्ति पहचानो और उसकी अभिव्यक्ति का प्रयत्न करो। अभिव्यक्ति के प्रयत्न में सबसे बड़ी समस्या है हमारे भीतर का अज्ञान, हमारे भीतर का मोह, हमारे भीतर पलने वाली आसक्ति जो कुछ करने नहीं देती, उसका निवारण हो तो जीवन में कहीं कोई कठिनाई नहीं। तपस्या करने के लिए आसक्ति समस्या है, अज्ञान समस्या हैं। इस अज्ञान और आसक्ति से अपने आप को मुक्त करोगे तो तुम्हारा चित्त तप से निरत हो जाएगा। अपने जीवन को मोड़ सकते हो, उधर से मोड़ो। अपने अंदर की विकृति का शमन करना चाहते हो तो तपस्या करो, अपने भीतर के विकारों का शमन करना चाहते हो तो तपस्या करो और जीवन की समस्याओं का समाधान पाना चाहते हो तो तपस्या करो। आज मैं आप से कौन-सी तपस्या की बात करूँ? उपवास करने की, ऊनोदर करने की, उस छोड़कर भोजन करने की, विविक्त शैय्यासन की, एकांत में ध्यान लगाने की, शारीरिक कष्टों को सहन करने की ? कौन सी तपस्या की बात करूं तो कहोगे महाराज ! हमारे वश में नहीं है।