दिव्य विचार: ईमानदारी की कमाई को पुण्य में लगाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: ईमानदारी की कमाई को पुण्य में लगाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि दूसरे मैं आपसे कहता हूँ पुण्य का पैसा अगर पाप में लगाओगे तो तुम्हारा पुण्य नाराज हो जाएगा और तुम पर पाप हावी हो जाएगा। पुण्य है इसलिए सुरक्षित हो। इसलिए पुण्य से उपार्जित धन को पुण्य में लगाओ, पाप में मत लगाओ। संकल्प लो आज के त्याग धर्म के दिन कि मैं अपनी सम्पदा का सही उपयोग, सही विनियोजन करूँगा। मैंने जो पैसा कमाया है उसमें कुछ न कुछ पाप जरूर हुआ है तो उस पैसे को भोगने में पाप न करूँ, पैसे को परमार्थ में लगाकर कुछ पुण्य कमाऊँ। पुण्य से कमाओ और कमाने के बाद पुण्य कमाओ। देखो आपको कमाई की बात कितनी अच्छी लगी। मैं दान की बात तो करता नहीं, आप लोग बहुत कंजूस हो। आपके पास इतनी कमाई का ऑफर है, आपको समझ में ही नहीं आ रहा। ऑफर दे रहा हूँ कि नहीं दे रहा हूँ? ऐसे लोक में कोई थोड़ा सा ऑफर देता है तो तुरंत मुँह में पानी आ जाता है। अभी तो आपके है कमाओ, पाप मुँह सूखे दिख रहे हैं, ये कमाई का अवसर पुण्य नहीं। बंधुओं ! थोड़ा विचार करो, धन सम्पत्ति का अंत क्या है? पैसा कमाओगे उसके बाद क्या होगा? तुमने पैसा कमाया, जिंदगी भर जोड़ा, उसके बाद एक दिन छोड़कर जाओगे। है और कोई उपाय ? या तो देकर जाओगे या छोड़कर जाओगे, लेकर जाने की कोई व्यवस्था तो है नहीं। भैया ! छोड़कर जाने से अच्छा है देकर जाना। किसको देना है? अपने बाल-बच्चों को दोगे जो जिंदगी भर गाली दिए, जिन्होंने तुम्हें कोसा, जिन्होंने तुम्हारी उपेक्षा की; उनको दोगे? यदि देकर जाना है तो अच्छे कार्य में लगाकर जाओ। अच्छा ! ईमानदारी से बोलना, आप लोगों से एक सवाल करता हूँ- आप अपने बाल बच्चों को अपनी सम्पत्ति देते हो; ये आपकी भावना है या मजबूरी? क्या हो गया? अपनी संतान को आप अपनी सम्पत्ति सौंपते हो, ये तुम्हारी भावना है या मजबूरी ?