दिव्य विचार: मोह में इतना मत उलझो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि ये चार हमारे लिए बाधक हैं। शरीर, सम्पत्ति, सामग्री और सम्बन्धी का मोह ये सब उलझा कर रखते हैं और इनमें उलझने वाला ही भारी होता है। भार का मतलब? भार यानी बोझ। एक आदमी कुछ अशांत सा दिख रहा था। उससे किसी ने पूछा- भाई! क्या बात है, कुछ अशांत से दिख रहे हो? वह बोला- बहुत वजन है। भाई ! खाली तो दिख रहे हो तुम पर कौन सा वर्डन (भार) है? बिल्कुल खाली हो, सौ ग्राम भी वजन तुम्हारे पास दिख नहीं रहा फिर भी बोल रहे हो बहुत वर्डन है, बड़ा बोझ है। अरे! भाई ! दिमाग पर बोझ है। किस चीज का बोझ है? बोला- काम का बोझ है, जिम्मेदारियों का बोझ है। बोले दिखता तो नहीं है, क्या काम तुम्हारे पास आ गए, कौन सी जिम्मेदारियाँ तुम्हारे पास आ गई? वह बोला- काम और जिम्मेदारियाँ तो हैं। ध्यान रखना! काम कुछ भार नहीं बनते, जिम्मेदारियाँ बोझ नहीं बनती; काम और जिम्मेदारी बोझ तभी बनती हैं जब मनुष्य उन्हें ओढ़ लेता है। ये हमारी मान्यता का बोझ है। लोक में सबसे भारी यदि कुछ है तो वह है हमारी मान्यता, जो हमारे ममत्व और आसक्ति से होती है। जिसके सिर पर जितनी क्षमता उसके सिर पर उतना बोझ और जिसके सिर पर जितना बोझ वह उतना दुखी। जो जितना भारी है वह उतना दुखी है। इस ममत्व को खाली करो। खालीपन आते ही खुलापन आएगा। एकदम इन्जॉय (आनन्द) करो। किसी से कोई मतलब नहीं, किसी प्रकार का किसी तरह का कोई टेंशन नहीं, आनन्द से जियो, निद्वन्द्वता का जीवन, निस्संगता का जीवन। खुलापन चाहते हो कि नहीं चाहते हो? सब कहते हैं कि महाराज ! हम लोग फ्रीडम चाहते हैं, खुलापन चाहते हैं। आज किसी से भी बात करो खासकर यंग जनरेशन (नई पीढ़ी) के युवको से बात करो तो कहते हैं- हम फ्रीडम चाहते हैं। मैंने कहा- हमारा अध्यात्म फ्रीडम की ही तो बात करता है और जिसे तुम फ्रीडम मानते हो उसमें तुम बंध जाते हो।