दिव्य विचार: अपनी कमियों को पहचानें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि यदि हम अपनी कमियों को जानें, उनका एहसास करें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें, अयोग्यता भी योग्यता में परिवर्तित हो जाएगी। लगन चाहिए, निष्ठा चाहिए, समर्पण चाहिए, हमारे संघ में एक महाराज, हमारे साथ दीक्षित हुए, नाम नहीं लेना, उनके साथ यह होता था कि एक कायोत्सर्ग करें तो एक झपकी आती थी। कायोत्सर्ग करने में भी झपकी, खड़े-खड़े सामायिक करते थे तो भी उनको झपकी आती थी। कर्म का उदय था। हमारे साथ के कई महाराज जी उनको देखकर हँसते थे कि यह क्या कर रहा है, यह क्या करेगा। जिनको आचार्य भक्ति करने में झपकी आ जाए, एक कायोत्सर्ग करने में झपकी आ जाए लेकिन एक दिन गुरुदेव ने कहा- देखो, कभी किसी का उपहास मत करो, इसके प्रयास में कोई कमी नहीं है, यह जीव पुरुषार्थी है, आज तुम इसका मजाक उड़ा रहे हो, कल यह तुमसे आगे भी बढ़ सकता है और उन्होंने वह कर दिखाया। कर दिखाया, लगन के साथ उन्होंने अध्ययन किया, ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन आज व्याकरण में चोटी के विद्वान बन गए। यह स्थिति है। जिसके भीतर योग्यता नहीं थी, उसने अपने भीतर की योग्यता को जगा लिया। तुम देखो, तुम्हें क्या लगता है, किस काम को मैं नहीं कर सकता, जो काम नहीं कर सकता, उसको कर पाने की क्या सम्भावनाएँ हैं। सीखो, सीखने का कोई अन्त नहीं होता और मनुष्य ज्यों-ज्यों सीखना शुरु करता है त्यों-त्यों उसकी योग्यता में निखार आता है। पहली बात अपनी अयोग्यता को जानो और उसे योग्यता में परिवर्तित करने का पुरुषार्थ करो। दूसरी बात औरों की अयोग्यता का उपहास मत करो और उसका फायदा मत उठाओ। कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र में अयोग्य दिखता है तो उसको उसका अहसास कराकर उसका मजाक मत उड़ाओ।