दिव्य विचार: तुम्हारा जीवन किसी से प्रभावित है या नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संसार में दो तरह के लोग होते हैं। एक वे हैं जो बहुत जल्दी किसी भी घटना या व्यक्ति से प्रभावित हो जाते हैं और दूसरे वे जिन पर जल्दी से किसी का प्रभाव नहीं पड़ता। पर एक बार यदि किसी से प्रभावित होते हैं तो फिर कभी अप्रभावित नहीं होते। आज मैं आपसे उसी की बात करने जा रहा हूँ। जीवन की चार स्थितियाँ हैं- प्रभावित, अप्रभावित, परिवर्तित और परिमार्जित । अपने मन से पूछो तुम्हारा जीवन किसी से प्रभावित है या नहीं? बोलो.... है? मन में झाँककर देखो कि तुम किससे जल्दी प्रभावित होते हो? जिससे एक बार प्रभावित हो गए उसके बाद तुम्हारी स्थिति क्या होती है? यदि छोटी-छोटी घटनाओं से प्रभावित होते हो, छोटे-छोटे लोगों से प्रभावित होते हो, छोटे-छोटे प्रसंगों से प्रभावित होते हो और छोटी-छोटी बातों से प्रभावित हो जाते हो तो समझना कि तुम्हारी स्थिति अभी बहुत कमजोर है । प्रसंग सम्यग्दर्शन का है। सम्यग्दर्शन का चौथा अंग है अमूढ़दृष्टि। अमूढ़दृष्टि का मतलब है जिसकी दृष्टि में कोई मूढ़ता न हो। मूढ़ता का मतलब क्या होता है? मूढ़ता यानी अज्ञानता, मूढ़ता यानी एक प्रकार का धार्मिक अन्धविश्वास, जो अज्ञानता से उत्पन्न होता है। सम्यग्दृष्टि अमूढ़ होता है। उसके अन्दर ऐसी कोई बात नहीं, वह अपने जीवन में ऐसी कोई भूल नहीं करता, जिसके लिए उसे पछताना पड़े। वह अपने आप में बहुत स्थिर और मजबूत रहता है। वह अमूढ़ रहता है। अमूढ़दृष्टि का मतलब है अपनी दृष्टि को किसी से प्रभावित न होने देना। मैंने एक बार अपनी दृष्टि को ठीक कर लिया तो अब किसी से प्रभावित नहीं होऊँगा। मेरी दृष्टि अगर प्रभावित है, प्रेरित है तो केवल वीतराग देव-शास्त्र-गुरु से है, इसके अलावा मैं और किसी से प्रभावित नहीं होऊँगा। उन्मार्ग में लगने वाले व्यक्ति का मन-वचन-काय से किसी भी प्रकार से समर्थन नहीं करना। कितना भी भय हो, कितना भी प्रलोभन हो, चाहे जैसा दबाव हो तो भी उन्मार्ग और उन्मार्गियों से प्रभावित नहीं होना। यह एक सम्यग्दृष्टि की पहचान है।