दिव्य विचार: विपरीत परिस्थितियों से घबराएं नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियाँ आएँ, घबराइए मत, धैर्य और संयम से काम लीजिए। अपने मन का संयम मत खोइए। संयम शब्द बहुत ही व्यापक है, प्रायः आप जब संयम की बात करते हैं तो खाने-पीने में संयम, उठने-बैठने में संयम, अपने आचार-विचार के संयम की बात की जाती है। निश्चित वह संयम है, लेकिन ये ऊपरी संयम है। असली संयम है-अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण। उस पर नियन्त्रण करने की कला अपने भीतर विकसित होनी चाहिए। आत्मनियन्त्रण नहीं खोने देना चाहिए, सेल्फ कंट्रोल को डेवलप करना चाहिए। नहीं..., मुझे संयम से काम लेना है। आप लोग क्या करते हैं, कुछ बात आपने सुनी तुरन्त प्रतिक्रिया, एकदम फायर। क्या होता है उससे? आग लगती है। आपके सामने जब भी ऐसे कोई कटु प्रसंग आएँ तो उन्हें पचाने की शक्ति और सामर्थ्य विकसित करनी चाहिए। मुझे उसे पचाकर चलना है, संयम रखना है। इस समय यदि मैंने ऐसा संयम नहीं रखा तो परिणाम गलत होंगे। आजकल जो लोग मैनेजमेंट की बात सिखाते हैं, वह भी आपको संयम का पाठ पढ़ाते हैं। व्यापार हो, खेल हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, उस समय कहा जाता है कि कोई भी बात है तो संयम रखना शुरू करो। अगर आप भावनाओं के बहाव में बह जाओगे तो वह आपके भविष्य के लिए खतरा है। वहाँ आप लोग ध्यान रखते हो, संयम रखते हो। सन्त कहते हैं- सम्पूर्ण जीवन व्यवहार में संयम रखने की कला सीख लो, कभी दुःखी नहीं होओगे। एक सूत्र अपने मन मस्तिष्क में अंकित कर लो - जब भी प्रतिकूलता आए, मुझे संयम से काम लेना है। भैया ! संयम से काम लो। आप लोग दूसरे शब्दों में बोलते है, ठण्डे दिमाग से सोचो। क्यों? गर्म दिमाग में तो उफानी है, ठण्डे दिमाग से सोचो। दिमाग को ठण्डा रखने के लिए हमें अपने अन्दर आत्म-संयम विकसित करना होगा।