दिव्य विचार: प्रवचन सुनने जा रहे है तो रूचिपूर्वक सुनें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि तीसरे क्रम में धर्म रुचि। मेरे हृदय में धर्म के प्रति कैसी रुचि है? निश्चित ही आप लोग यहाँ आए हैं, आपके हृदय में धर्म रुचि है, तभी आए हैं और आपके लिए रुचिकर बातें सुनने को मिलती हैं तब आए हैं। धर्म में रुचि रखने वाले लोग कई तरह की मानसिकता से भरे होते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिसके अन्दर बड़ी दृढ़ रुचि होती है, पक्की रुचि होती है। ऐसे लोग सब काम को गौण करके धर्म कार्य में अपना समय निकालते हैं, उनको उसी में अच्छा लगता है। चाहे सामने वाला कैसी भी स्थिति में हो, बात रोचक हो या अरोचक मुझे प्रवचन सुनना है तो सुनना है, मुझे पूजन करना है तो करना है, मुझे स्वाध्याय करना है तो करना है, मुझे सामायिक करनी है तो करनी है, मुझे मेरी अन्य धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न करनी हैं तो करनी हैं, वह मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है। कुछ लोगों का ऐसा होता है। कुछ भी स्थिति हो जाए इस कार्य को, उस क्रिया को वे कभी छोड़ते नहीं और कुछ लोग ऐसे होते हैं- अभी प्रवचन सुनने के लिए आ रहे हैं, बहुत अच्छी रुचि से सुन रहे हैं बहुत बढ़िया, महाराज ने तो क ख ग घ से क्या बात सुनाई, बहुत अच्छा सुना रहे हैं, मजा आ रहा है, लेकिन प्रवचन में आते-आते, सुनते-सुनते, अगर रास्ते में कोई और दूसरा कार्यक्रम आपको दिख गया तो आप उधर डाइवर्ट हो गए। अगर कोई और नई बात आ जाए तो व्यक्ति का झुकाव उधर हो जाता है। धर्म में रूचि होना और धर्म में प्रगाढ़ रुचि होना इन दोनों में बड़ा अन्तर है। आपकी धर्म में रुचि नहीं है, ऐसा तो मैं नहीं मानता लेकिन धर्म में दृढ़ रुचि है, ऐसा मुझे नहीं दिखता। जितनी धर्म में रुचि है, उससे ज्यादा रुचि और बातों में है। तुम बताओ तुम्हारे प्रवचन का समय है, प्रवचन के लिए आ रहे हो, डेली रुचिपूर्वक आ रहे हो, इधर घर से प्रवचन सुनने के लिए निकले थे।