दिव्य विचार: अपनी आदतों के गुलाम मत बनो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अपने ऊपर भरोसा होना चाहिए कि नहीं, मैं व्यसन छोड़ सकता हूँ। दृढ़ इच्छा जगाओ और ठानो कि मुझे छोड़ना है। संकल्पित हो जाओ कि छोड़ दिया, छोड़ दूंगा। दृढ़ संकल्प और अपने ऊपर विश्वास रखो कि नहीं मेरा संकल्प निभेगा, मुझे निभाना है। कई लोग नियम लेते हैं, महाराज जी! किसी दिन टूट जाए, तो क्या करूँ? भैया ! तू तोड़ने के लिए नियम ले रहा है कि निभाने के लिए ले रहा है? आप लोगों का मन बड़ा डगमग होता है। कोई भी नियम लेते हैं, महाराज जी ! किसी दिन टूट जाए तो? अरे भाई, यह तो बताओ टूट जाए तो की बात आ क्यों रही है? मैंने तो नियम निभाने के लिए लिया है, दिखाने के लिए तो नहीं लिया न? मुझे निभाना है और उसका भरोसा होना चाहिए। कि निभ जाएगा। जिनके मन में विश्वास नहीं रहता, वे नियम ले ही नहीं पाते। बहुत सारे लोग हैं- हम नहीं लेंगे, कहीं टूट गया तो? विश्वास, शक्ति की कमी है। वे सब के सब गुलाम है। गुलामी कई तरह की होती है- एक व्यवस्थागत गुलामी होती है, एक राजनैतिक गुलामी होती है, एक आर्थिक गुलामी होती है और एक वैयक्तिक गुलामी होती है। इन सब गुलामियों से तो लोग आज काफी-कुछ बाहर आ गए हैं। व्यवस्थागत गुलामी आज हमारे बीच नहीं है, राजनैतिक रूप से भी लोग आज आजाद हो गए हैं। अब वह गुलाम प्रथा भी नहीं है, जिससे लोगों को गुलाम बनाया जा सके। लेकिन फिर भी सब के सब लोग गुलाम हैं। गुलाम किसके हैं, अपनी आदतों के गुलाम। सब के सब अपनी आदतों के गुलाम हैं। एक बार जैसी मनोवृति बन जाती है, उसे बदलना बड़ा मुश्किल होता है। आदत, उस पर अंकुश होना चाहिए। मुझे अपनी मानसिकता को आजाद करना है। लत पड़ गई, छूटती नहीं। जाग जाओगे, सब छूट जाएगी। अच्छे-अच्छे लोग बुरी लत के शिकार होने के बाद उससे मुक्त नहीं हो पाते। बुरी लत के शिकार हो गए... मुक्त नहीं हो पाते।