दिव्य विचार: बुरी आदतों से रहें दूर- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि व्यसन क्या है? जिसे हम करना न चाहें पर करे बिना न रह पाएँ, वह है व्यसन। व्यसन कई तरह का है, सबसे पहला है- क्रोध-गुस्सा। कई लोगों की गुस्से की आदत होती है, बात-बात पर गुस्सा होते हैं, करना नहीं चाहते लेकिन करे बिना नहीं रहता; व्यसन है या नहीं? गुस्सा करना नहीं चाहता लेकिन करे बिना नहीं रहता, है बुराई? आपने कभी सोचा कि मेरे अन्दर क्रोध एक व्यसन की भाँति बैठ गया है। कैसे बैठता है? व्यसन बनते कैसे हैं? उसकी चर्चा तो अभी थोड़ी देर बाद करूँगा, लेकिन पहले हमें व्यसन को पहचानना है। यह व्यसन है, जो हमारी प्रवृति सी बन जाती है, जिसे हम अबुद्धिपूर्वक करने लगते हैं, जिसके बिना हम अपने आपको रोक नहीं पाते। है न ऐसी आदत ? आज हमें तय करना है कि हमें इस पर नियन्त्रण लाना है। कई बार हमारा मन विकारग्रस्त रहता है, मन में विकारी भाव आते रहते हैं और उन विकारी भावों से प्रेरित होकर कई तरह की प्रवृत्तियाँ आप लोग करते रहते हो। जैसे- किसी-किसी को कुछ नहीं है तो मोबाइल चलाने की आदत है। अब तो अच्छे-अच्छे बुड्ढे लोग भी चलाते हैं। व्हाट्स एप चल रहा है, फेस बुक चल रहा है और दूसरे सोशल साइट्स का भी आप प्रयोग कर रहे हैं। कहते हैं इससे टाइम वेस्टेज होता है, यह सब समय की बर्बादी है। रोज सुबह सोचते हैं कि आज नहीं करूँगा, पर बाद में मन क्या कहता है, चलो एक बार देख लो। है न? बोलो... यह व्यसन है या नहीं? बोलो तो... तुम लोग व्यसनी हो या नहीं? कई लोगों को गन्दी साइट्स देखने का एडिक्शन हो जाता है, पोर्न वीडियोज देखते हैं। मेरे पास कई लोगों ने आकर अपना आत्म निवेदन प्रकाशित किया, उसमें बच्चे भी हैं, युवा भी हैं, वृद्ध भी हैं। हाथ में ऐसी चीज ले ली, उसके प्रति मन में उत्पन्न हुआ सूक्ष्म आकर्षण हमें उसमें संलिप्त कर लेता है।