दिव्य विचार: संसार का सुख-दुख स्थाई नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि कि 'संसार का सुख भी स्थायी नहीं है और दुःख भी स्थायी नहीं है।' सुख-दुःख हमें अनुकूल और प्रतिकूल संयोगों से मिलते हैं, वे सब नश्वर हैं, पाप और पुण्य के फलस्वरूप हैं। इनके उत्पन्न-विनाश से तुम्हारे मन में हर्ष-विषाद नहीं होगा। जब तुम्हें मालूम पड़ जाये कि अच्छा भी स्थायी नहीं और बुरा भी स्थायी नहीं है, तो फिर ज्यादा आकुलता नहीं होगी, व्याकुलता नहीं होगी। जो रात-दिन आकुलता-व्याकुलता करते रहते हैं, उनकी नींद उड़ जाती है। चेहरे का रंग उड़ जाता है, गहरे डिप्रेशन में चले जाते हैं, कभी-कभी तो उनकी जिजीविषा भी शान्त- सी दिखाई पड़ने लगती है। संत कहते हैं - 'विचार करो, तुम अपवाद थोड़े ही हो । तुम्हारे जैसे न जाने कितने लोग हुए और रोजमर्रा कितने मरे हैं। मरना तो संसार का स्वभाव है, जिसने जन्म लिया है, वह मरेगा ही। तय मान करके चलो - तुम्हारे पूर्वजों ने जन्म लिया, मरण हुआ और उनके मरने के बाद तुम पैदा हुये, तुम्हें भी मरना होगा, यह बात ध्यान रखना जब वे मरे तभी तुमको यहाँ जगह मिली है। यदि वे संसार को खाली करके नहीं जाते तो हमारे लिये यहाँ जगह मिलती क्या ? यह सच मानना कि जहाँ हम बैठे हैं, वहाँ अनन्तों को दफनाया जा चुका है, अनन्तों का अन्तिम संस्कार हो चुका है और हमारा भी होने वाला है। तो फिर हम अपवाद कहाँ ?% यह तो प्रकृति का नियम है यह तो नियम है- फूल खिला है तो मुरझायेगा, चाँद उगा है तो छिपेगा, मेघ भरा है तो बरसेगा, दीप जला है तो बुझेगा, इसलिये घबराओ मत। जो होना है वह होता ही है। इसे कोई टाल नहीं सकता और जो इस रहस्य को पहचानते हैं, वे अपने जीवन में आई हुई बड़ी से बड़ी विपत्ति को भी बहुत सहजता से सहने में समर्थ हो जाते हैं।