दिव्य विचार: जिंदगी किराए का घर जाना तो पड़ेगा - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जिंदगी एक किराये का घर है, एक दिन तुम्हें इस घर से निकलना ही होगा, इस सच्चाई को पहचानो। चाहे अरबपति हो, चाहे करोड़पति हो, चाहे लखपति हो या हजारपति या भिखारी जबतक रह रहें हैं, रह रहें हैं। झोपड़ी में रहने वाला भी रह रहा है, महलों में रहने वाला भी रह रहा है, झोपड़ी और महल तो यहाँ फिर भी टिके रह सकते हैं लेकिन उनमें रहने वाला कभी टिकने वाला नहीं है, एक दिन उसे खाली करना पड़ेगा। झोपड़ी में हो तो झोपड़ी खाली करके जाओगे, महलों में हो तो महल खाली करना पड़ेगा। ये तुम्हारे अंदर का अज्ञान ही तो है जो बार-बार तुम्हें उस ओर आकृष्ट करता है, तुम्हें अपनी ओर खींचता है कि आओ-आओ-आओ। तुम पकड़े हुए हो ये अज्ञानता है, इस अज्ञानता को जब तक दूर नहीं करोगे जीवन सुखी नहीं होगा। कहाँ-कहाँ जुड़ जाता लगाव ! तीसरा है सामग्री के प्रति लगाव । सामग्री से व्यक्ति को बहुत लगाव होता है। सामग्री यानि तुमने जो अपने घर-परिवार के साथ जोड़ रखा है वह तुम्हारी सामग्री है, चाहे वह तुम्हारा फर्नीचर हो, चाहे तुम्हारे घर के बर्तन-भांडे हों, चाहे अन्य चीजें हैं, वे भी एक प्रकार से सम्पत्ति का अंश हैं। मनुष्य के मन में उनके प्रति जुड़ाव बना रहता है, उन्हीं के पीछे लगा रहता है। तुम्हारी अवधारणा है कि सामग्री जुटाने से अधिक से अधिक सुख पाया जा सकता है। सुख पाने के लिए मनुष्य सामग्री जोड़ता है पर बंधुओं ! आपने कभी इस है बात की पड़ताल करने की कोशिश की कि सामग्री जोड़ने से सुख मिला भी या नहीं। आज तुम्हारे पास जितने संसाधन हैं आज से पच्चीस वर्ष पहले इतने संसाधन नहीं थे, फिर दूसरी तरफ देखो आज जितना टेंशन है क्या पच्चीस वर्ष पहले ऐसा टेंशन था? फिर ये अवधारणा कितनी सही है कि सामग्री से सुख मिलता है? सामग्री से सुख मिलता है ये तुम्हारा अज्ञान है। सामग्री के मोह को छोड़ो, सुख को पहचानो। आखिरी है सम्बन्धी, सम्बन्धी जनों के प्रति मोह। ये मेरा बेटा, ये मेरी पत्नी, ये मेरे पिता, ये मेरे भाई, ये मेरी बहन। जो मेरे की बाते हैं ये सब अज्ञानता है।