दिव्य विचार: दुख में सुख खोजने की कोशिश करें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि दुख में सुख खोजें कहीं कोई कठिनाई आये तो देखें कि ये जो मेरा दुख है, बहुत कम हैं, दूसरों से तो बहुत कम है, दूसरे तो इससे भी ज्यादा दुखी हैं, मेरे पास तो कम है। ये क्या कम है, दूसरों से तो बहुत कम है, दूसरे तो इससे भी ज्यादा दुखी हैं, मेरे पास तो कम है। ये क्या कम उपलब्धि है? मेरे संपर्क में एक जज साहब थे। उनकी एक बेटी थी, जो जन्म से विकलांग थी। दोनों हाथ, दोनों पैर विचित्र तरीके और उस लड़की की उम्र दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी, उसकी सारी चर्या-क्रिया उन्हें अपने हाथों से करानी पड़ती थी। एक दिन जब वह मेरे पास दर्शनार्थ आये, तो उनके ही सामने किसी ने कहा कि महाराज जी, इनका जीवन बहुत दुखी है इनकी बेटी विकलांग है, महाराज जी आप आशीर्वाद दें। जज साहब ने जो जवाब दिया वह आप लोगों के लिए बड़ा उपयोगी है। उन्होंने कहा कि महाराज, मुझे कोई दुख नहीं है। मैं सोचता हूं कि मैंने कोई खोटे कर्म किये थे, जिससे ऐसा संयोग मिला। मेरी बेटी विकलांग है, इस बात का मुझे दुख नहीं, मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम मेरी बेटी विकलांग ही है चिल्लाती तो नहीं, पागल तो नहीं। उसी शहर में एक दूसरा व्यक्ति था उसकी बेटी बहुत चिल्लाती थी और जो जाये उसे काटने की कोशिश करती थी। दुख में सुख खोज लो, तुम्हारा दुख दूर हो जायेगा। देखोगे कि तुम बहुत हल्के हो। एक बात का ध्यान रखना कि संसार के जितने भी संयोग हैं, वे मनुष्य के नसीब से मिलते हैं। अच्छे हों तो मिलते हैं, बुरे हों तो मिलते हैं। उनको स्वीकार कर लोगे तो दुख भाग जायेगा, उससे प्रतिकार करोगे तो दुख भारी रहेगा। स्वीकार करते ही दुख नष्ट हो जाता है। इसलिये जब भी अपने जीवन में कोई प्रसंग आये, उसकी अच्छाई को देखने की कोशिश करना दुख में ये सुख खोजने कीकोशिश करना, तुम्हारा जीवन धन्य हो जायेगा।