दिव्य विचार: व्यवहार में विनम्रता लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: व्यवहार में विनम्रता लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अपमान किसी का मत करो। जीवन में कभी किसी का अपमान मत करो। तुम किसी का सम्मान न कर सको, चलेगा लेकिन कभी किसी का अपमान मत करो क्योंकि कोई मनुष्य एक बार अपमानित हो जाता है तो गांठ बाँध लेता है बैर की, विरोध की और फिर प्रतिहिंसा और प्रतिशोध की भावना से झुलस कर वह सर्वनाश करने पर उतारू हो जाता है। दुर्योधन थोड़ी देर के लिए अपमानित हुआ महाभारत मच गया।, वह महाभारत तो कुरुक्षेत्र की भूमि में लड़ा गया। अठारह दिन में खत्म हो गया। उसका जो अंजाम था लोगों ने एक बार देख लिया और भोग लिया पर तुम अपने इस प्रकार के व्यवहार के कारण रोज अपने घर में कितनी बार महाभारत मचाते हो इसका कुछ अंदाज है। तय करो हम किसी को अपमानित नहीं करेंगे। किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे जिससे सामने वाला तिरस्कृत, अनादृत, उपेक्षित या अपमानित महसूस करे । मनुष्य कब अपने आप को अपमानित महसूस करता है। जब उसकी संवेदनाओं पर गहरा आघात पहुँचता है। बड़े पद पर हैं लेकिन उनकी प्रवृत्ति में विनम्रता झलकती है, ऐसे लोग नौकर-चाकरों से भी जी लगाकर बोलते हैं। बंधुओं भद्रपुरुष की पहचान यही होती है। जिसकी भाषा में नम्रता और व्यवहार में विनम्रता हो वह व्यक्ति भद्र व्यक्ति कहलाता है। वह व्यक्ति किसी का भी अपमान नहीं करता। और जो भी व्यक्ति मिलता है उसका सम्मान करता है। अपमान से बचो और सम्मान में लगो। ये तुम्हारे जीवन का सबसे अच्छा सूत्र है। कभी किसी का अपमान मत करो और यदि कोई तुम्हारा अपमान कर भी दे तो अपने आप को अपमानित महसूस मत करो। लेकिन लोग हैं जो अपने आप को बड़ा मानते हैं, दूसरे को अपमानित करने में ही स्वयं को गौरवान्वित समझते हैं।