दिव्य विचार: नकारात्मक विचारों से दूर रहें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि यह काल्पनिक भय है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं, जिसका कोई वजूद नहीं, जिसकी कोई जड़ नहीं, उसके पीछे जो डरता है, इसका कोई इलाज नहीं। बीमार तन की सौ-सौ चिकित्सा है पर बीमार मन का कोई इलाज नहीं है। आजकल तन से बीमार लोग कम हैं, मन से बीमार लोग ज्यादा हैं। डरते भी उससे हैं, जिसका कोई अस्तित्व नहीं। मैं तुमसे पूछता हूँ जिसका सोल्युशन है, उससे डरने का क्या काम और जिसका अस्तित्व नहीं, उससे डरने का क्या काम? तो डरते क्यों हो? ये डर है तुम्हारा अज्ञान। जिसका सोल्युशन है, वहाँ डरना नहीं और जिसका अस्तित्व नहीं उससे डरना नहीं लेकिन आपके मन में एक ग्रन्थि की तरह यह बात बैठ जाती है और जब बैठ जाती है तो मनुष्य का जीवन डाँवाडोल हो जाता है। जब मन में भय होता है, शंका आ जाती है, शंका से चिन्ता और चिन्ता से घबराहट, एक साथ। देखो - बड़ा विचित्र खेल है, जहाँ शंका होती वहाँ भय होता है और जहाँ भय होता है वहीं शंका होती है। भय, शंका, चिन्ता के चक्र में मनुष्य सारे जीवन घूमता रहता है। वह अनावश्यक रूप से अपने आपको दुःखी बना लेता है। मनोविज्ञान तो यह कहता है कि जब इस तरह मनुष्य अपने बारे में सोचने लगता है, तो उससे निकलने वाली जो नकारात्मक तरंगे हैं, उनके द्वारा वह वैसी सिचुएशन को क्रिएट कर देता है। लॉ ऑफ अट्रैक्शन के सिद्धान्त को जो समझते हैं, वे इस बात को जानते हैं कि " थॉट्स बिकम थिंग्स। हमारे विचार ही साकार हो जाते हैं, अगर मेरे मन में एक बार नकारात्मक विचार बैठ गए तो बढ़ते-बढ़ते जो नहीं होना, उसे प्रकट कर दें। जिनका अपना कोई अस्तित्व नहीं, वे उनका भी निर्माण कर देते हैं। जिसकी वजह से मनुष्य सारे जीवन केवल दुःखी, दुःखी और दुःखी बना रहता है।