दिव्य विचार: नश्वर है सांसारिक पदार्थ - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि नादानी जिस मनुष्य के मन में भरी रहती है वह कभी अपने जीवन का कल्याण नहीं कर सकता। सांसारिक पदार्थ कर्म के संयोग है, पुण्य की धरोहर हैं और नश्वर हैं, कभी भी नष्ट हो जाने वाले हैं। संसार में देखूँ तो मुझसे भी बड़े-बड़े लोग बैठे हैं, मैं तो बहुत छोटा हूँ यदि ये बात तुम्हारे मानस में आ जाए तो तुम्हारे मन में कभी मान प्रकट नहीं होगा। चार बातों से मान का शमन होता है। संसार के सभी संयोगों को कर्मायत्त (कर्म के अधीन) मानो, संसार के सभी संयोगो को कर्म की धरोहर मानो, संसार के सारे संयोगों को नश्वर मानो और अपने पास जो है उसे अपने से अधिक वालों से मिलाकर देखो तो समझ में आएगा कि औरों के सामने तो मैं बहुत कम हूँ। मेरे पास कितना सा धन है? इस दुनिया में मुझसे बड़े-बड़े धनवान चक्रवर्ती
जैसे आए और चले गए। मेरा क्या रूप है? मुझसे भी बड़े-बड़े रूपवान इस दुनिया में आकर चले गए और आज भी रहते हैं। मेरे पास ज्ञान का कितना सा अंश है? मुझसे भी बड़े-बड़े ज्ञानवान इस दुनिया में हैं। मैं जितना मशहूर हूँ उससे भी ज्यादा प्रतिष्ठित लोग इस दुनिया में हैं। मेस जितना नाम है उससे ज्यादा नामचीन लोग इस दुनिया में हैं। मुझे तो बहुत थोड़े लोग जानते हैं, दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनको सारे लोग जानते हैं पर दुनिया कितना भी जाने और कितना भी पहचाने कोई सदा के लिए टिकने वाला नहीं है। यदि चार बातों को ध्यान म ोगे तो मन में कभी मान नहीं आएगा। बंधुओं! मान से बचिए। मान व्यक्ति के रग-रग म आ है। मान का ही एक भरविलोधी पक्ष है जिसको बोलते है दीनता। मान और दीनता दोनों मन के विकार हैं। न मान करो, न अभिमान करो और न ही दीनता का भाव मन में आने दो। अभिमान मनुष्य की सोच को संकीर्ण बनाता है और दीनता के कारण मनुष्य के मन में हीन भावना आती है। अभिमानी व्यक्ति दूसरों का अनादर और तिरस्कार करता है तथा दीन-हीन व्यक्ति अपने आप में बहुत हीन भावना से ग्रसित हो जाता है।