दिव्य विचार: व्यक्तित्व में शालीनता हो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि वस्तुतः जिनका व्यक्तित्व उथला होता है, वे बहुत अकड़ते हैं। उनके बोलने का, चलने का, उठने का, बैठने का जो ढंग होता है, उससे अलग ही उनका रौब दिखता है। ध्यान रखना ! अपने चाल-ढाल में रुआब दिखाना, बहुत ध्यान से सुनना ! चाल-ढाल में रुआब दिखाना और अपने व्यक्तित्व को रुआबदार बनाना, व्यक्तित्व में एक नया रौब उत्पन्न करना, दोनों में बहुत अन्तर है। जो रुआब या रुतबा दिखाते हैं, उनको पीठ पीछे लोग गाली देते हैं और जो अपने जीवन में आब बढ़ाते हैं लोग उन्हें अपने सिर पर बिठाते हैं। तुम कहाँ हो? देखो ! रुआब झाड़ने वालों में, रुआब दिखाने वालों में या अपने आब को बढ़ाने वालों में। अगर तुम्हारे व्यक्तित्व में शालीनता होगी तो विनम्रता तुम्हारी प्रवृत्ति में दिखेगी और लोग तुम्हें अपना आदर्श बनाए बिना नहीं रहेंगे। सीखना है तो अशोक जी से सीखो- कहीं पर भी मैं देखता हूँ। आएँगे, अगर थोड़ा लेट हुए तो सबसे पीछे बैठ जाएँगे, सामान्य व्यक्ति के बीच बैठ जाएँगे जबकि आज यह समाज के सिरमौर हैं। इन्होंने समाज में वह स्थान बनाया है और समाज इनको वह स्थान देकर गौरवान्वित होती है लेकिन यह खुद कहाँ? पीछे रहते हैं। यह हमारे व्यक्तित्व की शालीनता का एक परिचय है। बन्धुओं ! एक बात मैं आप से कहता हूँ- लोग कहते हैं- यह आदमी बड़ा, बड़े आदमी की आजकल बड़ी पूछ भी होती है पर मैं आपसे पूछता हूँ- आपकी नजर में बड़ा आदमी कौन है? बोलो... मैं किसी बडे आदमी की बात करूँ तो आपकी आँखों में कैसे व्यक्ति की छवि उभरेगी? थोड़ा ईमानदारी से बोलना ! अमूमन बड़े आदमी का मतलब जिसके पास बड़े बाग, बड़े ठाठ हों, बढ़ा रुतबा हो, उसको बड़ा कहा जाता है। यह तो मेरी सभा में तुम लोग ऐसा बोल रहे हो - मुझे मालूम है। मैं तुम्हें एक बड़े आदमी की पहचान बताता हूँ, बड़ा आदमी कौन? जिसके पास जाने वाला कभी अपने आपको छोटा महसूस न करें।