निजीकरण: बिजली बिलों में छूट व किसानों की सब्सिडी खतरे में

सतना | बिजली बिलों में मिल रही छूट के नाम पर राहत और किसानों की सब्सिडी अब खतरें हैं और संभावनाएं तो यहां तक हैं कि आने वाले दिनों में बिजली और भी महंगी तो प्रति यूनिट बिलों की दरों के भुगतान में उपभोक्ता हो चाहे किसान सबको ज्यादा जेब ढ़ीली करनी होगी। महंगाई के इस डंक की वजह विद्युत कंपनियों के निजीकरण का होना है। निजी हाथों में कंपनी गई तो जाहिर है कि मनमानी होगी और आम उपभोक्ता के साथ कंपनी में काम कर रहे कर्मचारियों को भी मुश्किल होगी। शनिवार को यूनाइटेड फोरम फॉर पॉवर एम्लाइज यूनियन के बैनर तले प्रेमनगर के श्रम कल्याण केंद्र में सभी बिजली कर्मचारियों व अधिकारियों ने निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन किया और अपनी मांगे रखी।

नहीं रखेंगे संविदा के कर्मचारी
श्रम कल्याण केंद्र में निजीकरण के विरोध में प्रदेश संयोजक यूनाइटेड फोरम वीकेएस परिहार, रीजनल संयोजक वीपी पटेल व जिला अध्यक्ष वीके उपाध्याय ने कहा कि यदि सरकार की मंसा कामयाब हुई और बिजली कंपनियों का निजी करण हुुआ तो संविदा में काम कर रहे कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी। श्री परिहार के अनुसार निजी कंपनियों की शर्त है कि उनके काम में कोई भी संविदा कर्मचारी काम नहीं करेगा वो जेई हो चाहे एई। इसके अलावा बांकी के कर्र्मचारी भी कंपनियां अपने हिसाब से रखेंगी। कुलमिलाकर निजीकरण के चलते कई अधिकारी कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे।

कोई पेंशन नहीं मिलेगी
आरोप है कि निजीकरण के कारण रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन की कोई जवाबदारी ठेका कंपनी की नहीं होगी। ट्रांसमिशन के अभय सक्सेना ने कहा कि निजीकरण का विरोध केवल कर्मचारी हित में नहीं आम उपभोक्ता के हित में भी है वरना उनक ी गाढ़ी कमाई केवल बिजली बिलों को भरने में चली जाएगी।

फोरम की ये चार मांगें 
यूनाइटेड फोरम पहले तो निजीकरण के खिलाफ है और इसे लागू नहीं होने देने का दावा कर रहा है तो उनकी चार और मांग भी हैं। जिसमें संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण हो। आउटसोर्स कर्मचारी की सेवा की गांरटी सरकार दे। पेंशन फंड की स्थाई  व्यवस्था की जाए। कंपनी कैडर व संविदा में भी। पहले की तरह कर्मचारियों को बिजली बिलों में 50 फीसदी और रिटायर हो चुके कर्मचारियों को 25 फीसदी छूट दिलाया जाए।