क्रय-विक्रय पर रोक पर निर्माण की अनुमति, सवालों के घेरे में जिला प्रशासन का आदेश
सतना | जमीनों के फर्जीवाड़े से जुड़ा जिला प्रशासन का एक आदेश चर्चा का विषय बना हुआ है। स्टेशन रोड में प्रेम नर्सिंग होम के बगल से बनने वाले एक मार्कटिंग काम्पलेक्स समेत कई निर्माण कार्य सवालों के घेरे में आ गए है। जिस जमीन पर दावा जताकर पेट्रोल पंप खोला गया और जिस जमीन पर मार्केटिंग कांपलेक्स का निर्माण कराया जा रहा था वह नवंबर माह में जांच में सरकारी निकली थी ।
राजस्व अभिलेखों की जांच पड़ताल में यह तथ्य सामने आया था कि ये आराजियां मप्र शासन की हैं जो बाद में कूट रचित दस्तावेजों व बटांकों का खेल खेलकर निजी आराजियों में तब्दील कर दी गईं थी। एसडीएम ने मामले की छानबीन के लिए गठित टीम के प्रतिवेदन के आधार पर शापिंग माल के निर्माण पर रोक लगाते हुए उन 10 भू-क्रेताओं को नोटिस भेजा था जिनके नाम अब इस आराजी के भूमिस्वामी के तौर पर दर्ज है।
एक ओर तो जांच में जमीन को सरकारी पाकर तथाकथित भू स्वामियों को नोटिस जारी कर दी गई मगर इन आराजियों पर चल रहा निर्माण कार्य रोकने की कवायद कागजों से निकलकर नहीं की गई।हालांकि इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि निर्माण पर लगी रोक हटा ली गई है इसलिए निर्माण चल रहा है लेकिन सरकारी जमीन की आशंका पर क्रय-विक्रय पर रोक और निर्माण को अनुमति देने का आदेश जानकारों के गले नहीं उतर रहा हैं।
सूत्र बताते हैं कि शहर की इस बेशकीमती जमीन पर चल रहे निर्माण कार्यों को संभाग के एक अधिकारी का वरदहस्त प्राप्त है जिसके कारण जिला प्रशासन के अधिकारी भी विसंगतिपूर्ण आदेश जारी कर रहे हैं। अब इन आरोपों में कितना दम है यह तो जांच पर ही स्पष्ट हो सकेगा लेकिन सरकारी जमीन की चल रही जांच के बीच युद्ध स्तर पर चल रहा निर्माण कार्य शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है।
इन्हें भेजी थी नोटिस
संयुक्त जांच दल द्वारा दिए गए प्रतिवेदन व उठाए गए बिंदुओं का परीक्षण कराने के पश्चात न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी रघुराजनगर ने पत्र क्रमांक/ 817/अनु. अधि./2020 जारी किया था । जारी पत्र में आराजी क्रमांक-138/6/2/ तथा आराजी क्रमांक 138/6/3 के भू-स्वामी के तौर पर दर्ज रेखारानी पत्नी राजेश चौरसिया तथा राजेश चौरसिया पुत्र शिवप्रसाद चौरसिया को शापिंग माल का निर्माण कार्य रोकने के आदेश दिए गए थे ं। पत्र में बताया गया था कि आराजी क्रमांक 138 रकबा 1.92 हे.नजूल की आराजी में अधिक रकबा दर्ज कराया गया है। जांच में भू-क्रेताओं को साफ आदेश दिए गए थे कि चूंकि प्रकरण संयुक्त जांच टीम के पास विचाराधीन है अत: इस अवधि में उक्त आराजी में न तो निर्माण किया जा सकेगा और न ही इसे बेचा-खरीदा जा सकेगा।
प्रतिवेदन में सामने आए थे क्रेताओं के नाम
गौरतलब है कि शहर की इस बेशकीमती जमीन की जांच के लिए नायब तहसीलदार आशुतोष मिश्रा, राजस्व निरीक्षक योगेश तिवारी,पटवारी रामसुजान शुक्ला तथा पटवारी अनूप पांडे को सम्मिलित कर संयुक्त जांच दल का गठन किया गया था। गठित जांच दल ने तमाम दस्तावेजों की पड़ताल करते हुए पाया था कि उक्त आराजी 1958-59 तक मप्र शासन के तौर पर दर्ज थी। इसके बाद 1993-94 तक यह आराजी आबादी नजूल मप्र शासन अभिलेखित पाई गई। 1995 के बाद कूटरचित दस्तावेजों के जरिए इस जमीन पर बटांकों का खेल शुरू हुआ और समय-समय पर इसके कई बटांक कर 10 लोगों ने भू-स्वामित्व हासिल कर लिया।
प्रतिवेदन के अनुसार आराजी क्र. 138 का कुल रकबा 1.92 हेक्टेयर है जिसमें से आराजी क्रमांक- 138/1 रकबा 0.574 शासकीय के तौर पर दर्ज है। इसके अलावा आराजी क्रमांक- 138/2 रकबा 0.008 हेक्टेयर साधना सराफ, आराजी क्रमांक- 138/2/1 रकबा 0.051 हेक्टेयर डा. अरविंद सराफ , आराजी क्रमांक- 138/3/2 रकबा 0.008 हेक्टेयर साधना सराफ , आराजी क्रमांक- 138/5/1 रकबा 0.012 हेक्टेयर श्रेयस जैन, आराजी क्रमांक- 138/5/2 रकबा 0.042 हेक्टेयर नीना जैन, आराजी क्रमांक- 138/6/1 रकबा 0.050 हेक्टेयर नरेशचंद्र जोशी, आराजी क्रमांक- 138/6/2 रकबा 0.040 हेक्टेयर रेखा रानी चौरसिया तथा राजेश कुमार चौरसिया के नाम दर्ज हैं। बताया गया कि इन सभी भू-क्रेताओं को एसडीएम द्वारा नोटिस जारी की गई थी । अब यह रहस्य ही है कि नोटिस जारी करने के बाद ऐसी क्या परिस्थितियां बनी कि जिला प्रशासन को यू टर्न लेना पड़ रहा है और जारी निर्माण को नजर अंदाज करना पड़ रहा है।
ऐसे तो नोटिस धारकों का पक्ष मजबूत कर रहा प्रशासन
जिला प्रशासन का निर्माण कार्यों को नजरंदाज करना नोटिसधारकों का पक्ष मजबूत कर रहा है। जानकार एक ओर नोटिस और सुनवाई तो दूसरी ओर जारी निर्माण कार्य को हास्यास्पद बता रहे हैं। बताया जाता है कि पहले क्रय-विक्रय और निर्माण पर रोक लगाने वाले जिला प्रशासन ने बाद में क्रय-विक्रय पर रोक तो लगाए रखी लेकिन निर्माण की सहमति दे दी नतीजतन कांपलेक्स के साथ साथ आराजी क्रमांक- 138/5/1 व आराजी क्रमांक- 138/5/2 में भवन निर्माण का काम युद्ध स्तर पर कराया जा रहा है।
जानकार सवाल उठाते हैं कि यदि जांच में जमीन सरकारी मिली है तो निर्णय होने तक निर्माण बंद कराया जाना चाहिए क्योंकि बाद में लाखों रूपए खर्च कर निर्माण कराने का तथ्य रखकर निर्माणकर्ता अदालत जा सकते हैं जहां जिला प्रशासन को ठीक वैसे ही मुह की खानी पड़ सकती है जिस प्रकार से पन्नीलाल चौक स्थित लाल माधव सिंह बाड़ा समेत जिले की दूसरी अन्य सरकारी जमीनों के मामले में प्रशासन मुह की खा रहा है।
देखिए खरीदी बिक्री पर अभी भी रोक है। जहां तक सवाल निर्माण का है तो उसकी एक आवेदन पर अनुमति दी गई है। चूंकि निर्माण के लिए संबंधित विभागों से अनुमति ली गई है अत: निर्माण की अनुमति है। यदि जांच पूरी होने पर जमीन में गड़बडी मिलती है तो आगे कार्रवाई की जाएगी।
राजेश शाही, सिटी एसडीएम