डस्ट का उड़ता गुबार, गांवों में बढ़ रहा संक्रमण का खतरा
रीवा | ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश हवा हो गए हैं। क्रेशर संचालक गांवों ही हवा जहरीली कर दिए हैं। गांव के गांव बीमार हो रहे हैं। बच्चों की सांसों में डस्ट भर गई है। क्रेशर के बाहर प्रदूषण रोकने दीवार तक नहीं है। बोर्ड ने अभियान चलाया था, नोटिस जारी कर डर भी दिखाया। बाद में सब मैनेज कर चुप्पी साध ली है। बिजली कनेक्शन कटे थे, वह भी गिट्टी पीस रहे हैं।
रीवा जिले में वर्तमान में 150 से अधिक लीज जारी है। इसकी तुलना में क्रेशर की संख्या दो से तीन गुना अधिक है। इन क्रेशर संचालकों ने नियमों को धता बता दिया है। अवैध तरीके से भी क्रेशर जिले में संचालित है। बनकुईयां, दादर, मद्धेपुर, कौआढ़ाढ़, हिनौती, बैजनाथ जैसे गांव में अवैध के्रशर ने लोगों को बीमार बना दियाहै। कइयों ने खनिज माफियाओं के डर से गांव तक छोड़ दिए हैं। यहां कभी गांव बसते थे, अब सिर्फ खदान और क्रेशर हैं।
माफिया जमीन और प्लांट लगाने के लिए लोगों के घर तक उजाड़ रहा है। इसके अलावा जो बचे हैं, वह प्रदूषण की चपेट में आकर बीमार हो रहे हैं। क्रेशर प्लांट जिन गांवों में चल रहे हैं, वहां सुरक्षा और प्रदूषण रोकने के मानकों को पूरा नहीं किया जा रहा है। अधूरी व्यवस्थाओं के बीच चल रहे इन क्रेशर प्लांट को कायदे से बंद कर दिया जाना चाहिए, लेकिन सरकारी अधिकारियों के संरक्षण में ही माफिया फल फूल रहे हैं।
क्रेशर प्लांट के बाहर बोर्ड अनिवार्य
क्रेशर प्लांट वहीं संचालित होना अनिवार्य है, जहां लीज स्वीकृत है। हालांकि ऐसा नहीं हो रहा है। बिना लीज के भी खेतों में प्लांट लगे हैं। पत्थर कहीं और से पहुंच रहा है। सभी गांवों मं ऐसा ही नजारा है। इतना ही नहीं क्रेशर प्लांट के बाहर बोर्ड पर संचालक का नाम, क्रेशर का नाम और लीज की अवधि दर्ज होनी चाहिए। यह भी मौके पर नहीं मिलता। एक बोर्ड की आड़ में दो से तीन क्रेशर पीछे तक लगे होते हैं।
प्रदूषण रोकने खड़ी होनी चाहिए दीवार
क्रेशर प्लांट से उड़ने वाली धूल और डस्ट को रोकने के लिए मौके पर ऊंची दीवार खड़ी की जानी चाहिए। प्लांट संचालकों को पानी के छिड़काव के भी निर्देश हैं। इसके अलावा परिसर को हरा भरा करने के लिए पौधरोपण भी जरूरी है। हालांकि कहीं भी यह व्यवस्था नहीं है। क्रेशर प्लांट में धूल के अलावा कुछ नहीं मिलता। बच्चे, बड़े और बूढ़े सांस के रोगी हो गए हैं। संजय गांधी में बैजनाथ, दादर, मद्धेपुर, हिनौती, बनकुईयां, कौआढ़ाढ़ जैसे गांवों से हर दिन लोग पहुंच रहे हैं।