दिव्य विचार: ईर्ष्या होगी तो असहिष्णुता बढ़ेगी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि कोई व्यक्ति बहुत तेजी से बढ़ रहा है, उसकी प्रगति नहीं सह पा रहे हैं, झूठे दोष लगा दो, कहानियाँ गढ़ दो, दुष्प्रचार कर दो, ऐसा होता है? मैं महसूस करता हूँ। मैं व्यक्ति के व्यक्तित्व को पहचानने की कुछ कसौटियाँ रखता हूँ। मेरे सामने जो व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है, मैं उसके आधे नम्बर काट लेता हूँ। सुनता हूँ, उनकी पूरी बात सुनकर समझ जाता हूँ कि उस व्यक्ति का स्तर क्या है? बहुत सारे ऐसे लोगों को भी मैंने देखा है जो धर्मात्मा व्यक्ति है, ठीक मन वाला है, अच्छे कर्म करने वाला है, जब हम लोगों से जुड़ता है और आगे बढ़ने की स्थिति में होता है तो दूसरे आकर हम लोगों के कान भरने की कोशिश करते हैं और उसके बारे में मिथ्या मनगढ़न्त बातें करना शुरु कर देते हैं। (महाराज जी ! यह ऐसा है, वह वैसा है)। यह तो मुझे बत्तीस-तैंतीस साल का अनुभव हो गया, मैं जानता हूँ कि किसकी बात में कितना गुणा करना है और किसकी बात में कितने का भाग लगाना है। मैं सुनता सबकी हूँ, सुनना पड़ेगा, क्योंकि तुम्हारे बीच में हूँ। उनका आशय कितना कुटिल है कि महाराज की नजर से गिर जाए। एक बात मैं बताऊँ आपको, मेरे सामने जब भी ऐसी स्थिति आती है तो सामने वाला तो मेरी नजर से नहीं गिरता, लेकिन बताने वाले का मूल्य मेरी नजर में कम हो जाता है। तुम अपना अवमूल्यन तो कर बैठे, अपना मूल्य तो तुमने कम कर दिया। उसकी तरफ तुम्हारी दृष्टि होनी चाहिए। यह ईर्ष्यावश दोषारोपण है। धर्मात्माओं के ऊपर मिथ्या दोषारोपण कर दिए, साधु-सन्तों तक को नहीं छोड़ा। यह कितना नीच, निन्द्य व अनैतिक कर्म है। इससे बचिए, सुधार कीजिए। सारा जीवन प्रवचन सुनते-सुनते बीत जाता है। धर्म और समाज के कार्यों में अग्रणी स्थान रखते हैं, लेकिन अन्तर्मन में ईर्ष्या होती है। ईर्ष्या होगी तो असहिष्णुता बढ़ेगी और जिसके अन्दर असहिष्णुता है वह दोषारोपण करेगा।