दिव्य विचार: सुख, शांति और संतुष्टि महत्वपूर्ण- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज तुम्हारी दिशा क्या है? किधर बढ़ रहे हो? पाँच इन्द्रियाँ और मन; ये हमारी चेतना को भटकाने वाले तत्व हैं। सही दिशा में चलने वाला व्यक्ति धीमी गति से चलकर भी अपने गन्तव्य तक पहुँच जाता है और गलत दिशा में तेज गति से दौड़ने वाला भी भटकता रहता है। अपने मन को टटोलकर देखो, क्या स्थिति है? सही दिशा में चलने वाले हो या दिशाहीन बनकर दौड़ने वालों में शामिल हो? कहाँ हो? यदि सही दिशा में चलने वाले होगे तो नियमतः अपने लक्ष्य के नजदीक पहुँचोगे और दिशाहीन होकर दौड़ोगे तो भटकते ही रह जाओगे । आज तक का इतिहास तो यही बताता है कि मनुष्य दौड़ रहा है, बड़ी तेज गति से दौड़ रहा है। केवल दौड़ना-दौड़ना-दौड़ना ही उसके जीवन में जुड़ा हुआ है। उसका अपना कोई लक्ष्य नहीं; उसका अपना कोई गन्तव्य नहीं क्योंकि उसकी अपनी कोई दिशा नहीं। मुम्बई जाना हो और कलकत्ता की गाड़ी में बैठोगे तो कहाँ पहुँचोगे? कलकत्ते की गाड़ी में बैठने वाला व्यक्ति कभी मुम्बई नहीं पहुँच सकता। मुम्बई पहुँचने के लिए मुम्बई की गाड़ी में ही बैठना होगा। तुम चाहते हो सुख, शांति, संतुष्टि और प्रसन्नता। तुम्हारी जो दिशा है क्या वह सुख की ओर जाती है? क्या वह शांति, संतुष्टि और प्रसन्नता की ओर जाती है? अनुभव करो, जाँचों, परखो और देखो। कैसे मानें कि मेरी दिशा सही है? कैसे जानें कि मैं गलत दिशा में तो नहीं चल रहा हूँ? क्या इष्ट है तुम्हारा? तुम्हारे जीवन का उद्देश्य क्या है? सुख, शांति, संतुष्टि और प्रसन्नता चाहते हो पर तुमने कभी इस बात का आकलन करने की कोशिश की कि जिस रास्ते पर चल रहा हूँ उस रास्ते पर चलकर आज तक किचित भी सुख, शांति और संतुष्टि पाई या रंच मात्र भी प्रसन्नता हमें मिली। जो प्राप्त हुआ उसकी समीक्षा करके देखो। यदि ये चीजें प्राप्त कर ली तो समझ लेना आप राइट डायरेक्शन में हो, सही दिशा में हो और यदि नहीं पा सके तो आपको अपनी दिशा बदलने की जरूरत है।