दिव्य विचार: इच्छाओं पर नियंत्रण रखें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अपने मन को पलटकर देखो, आपके मन में सुख-शांति कब आती है? जब मनोवांछित पदार्थों को पाते हो तब या अपने मन को नियंत्रण में रखते हो तब ? मन के नियंत्रण में सुख-शांति मिलती है अथवा मनोवांछित की प्राप्ति में? मनोवांछित मिलने पर तो सुख-शांति मिल जाती है लेकिन जब मनोवांछित नहीं मिलता है तब क्या होता है? तकलीफ होती है। ईमानदारी से बोलो मनोवांछित पाने के बाद तुम्हें कितनी देर के लिए शांति मिलती है और मन को नियंत्रण करने पर क्या होता है? तकलीफ होती है। मन को नियंत्रित कर लिया, मन को रोक लिया, मन को समझा लिया, मन मार लिया तब क्या होता है? एक व्यक्ति है जिसके मन मे मिठाई खाने की इच्छा है और मिठाई खाने के लिए लालायित है। चार प्रकार की मिठाईयाँ उसकी थाली में हैं लेकिन उनमें उसकी मनपसंद मिठाई नहीं है। चार प्रकार की मिठाईयाँ होने पर भी अधिक की चाह है। एक दूसरा व्यक्ति है जिसने मीठे का त्याग किया हुआ है उससे कहा जा रहा है मिठाई है खाओ। वह कहेगा नहीं आज मेरा मीठे का त्याग है; मैं नहीं खाऊँगा। अब बताओ कौन ज्यादा सुखी है? जिसका त्याग है वह सुखी है और जो भोग रहा है वह सुखी नहीं है। सूत्र लीजिए सुखी होने की दिशा है नियंत्रण। मन पर नियंत्रण, इन्द्रियों पर नियंत्रण और इच्छाओं पर नियंत्रण। जितना नियंत्रण होगा तुम उतने सुखी रहोगे और जितना उनका भोग करोगे उतना दुखी रहोगे। तय करो किस दिशा में जा रहे हो? नियंत्रण की दिशा में या भोगों की प्राप्ति की दिशा में। मन को शांति कहां मिलती है? मन की शांति नियंत्रण में है क्योंकि मन कभी भी शांत नहीं होता। जैसे ईधन से अग्नि को बुझाया नहीं जा सकता वैसे ही विषयों से मन को कभी तृप्त नहीं किया जा सकता। इच्छाओं की पूर्ति तृप्ति का साधन नहीं बनती। इच्छाओं के नियंत्रण से ही इच्छाएं तृप्त होती है।