दिव्य विचार: मां के संस्कारों को नहीं भूलें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: मां के संस्कारों को नहीं भूलें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि यह है माँ, और इसका नाम है मातृत्व। काश ! आज की सन्तान इस बात को समझ पाती। थोड़ी देर के लिए विचार करो अगर तुम्हारी माँ नहीं होती, तुम्हारे पिता नहीं होते, तो जो कुछ तुम आज हो, वह रह पाते? इस दुनिया को देख पाते? जन्म ले पाते? जीवन जी पाते? कितना बड़ा उपकार है, तुम्हारी माँ का तुम पर। जिसने नौ माह तक तुम्हें अपने पेट में रखा। तुम्हारे लिए अपने खाने-पीने, उठने-बैठने सब प्रकार के मौज-शौक का परित्याग किया। न केवल पेट में रखा, नौ माह तक उस पेट में रखकर उसकी पीड़ा को सहते हुए प्रसूति के कष्ट को झेला । कितना दर्द सहा, तुम्हें जन्म देने के लिए। इतना दर्द सहकर तुम्हारी माँ ने तुम्हें जन्म दिया, न केवल जन्म दिया, जन्म देने के साथ तुम्हें जीवन दिया, यदि माँ ने जन्म देकर तुम्हें लावारिस छोड़ दिया होता, तो तुम्हारा क्या होता? किसी झाड़ी में फेंक दिया होता तो तुम्हारा क्या होता? चील-कौवे और गिद्ध तुम्हें अपना शिकार बनाते। यूँ ही कहीं छोड़ दिया होता तो आज किसी अनाथालय में पल रहे होते। उन्होंने जन्म दिया, जन्म देने के बाद जीवन भी दिया, हमें समय पर खिलाया, पिलाया, स्वास्थ्य का ध्यान रखा, बीमार पड़ने पर डॉक्टर को दिखाया, खुद गीले में रहकर हमे सूखे में सुलाया। क्या नहीं किया? थोड़ी सी भी कुछ पीड़ा हो, तो हमारी पीड़ा का अनुभव पहले उसने किया हमें बाद में रखा, वह माँ है। हमें न केवल जन्म दिया, हमें पाल-पोस कर बड़ा किया, हमे अच्छे संस्कार दिए, यह माँ-बाप के संस्कारों का ही फल है कि हम आज एक सभ्य- सुसंस्कारित व्यक्ति की तरह इस धरा पर जी रहे हैं। यदि हम संस्कारहीन होते तो लुच्चे- लफंगे बनकर आवारा-अपराधी बनकर घूमते रहते या जेल के सींखचों में बन्द हो जाते। कितनी बड़ी भूमिका है माँ की।