दिव्य विचार : खतरों से घबराएं नहीं, डटे रहें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जीवन में जब कभी ऐसी स्थिति आए, आत्मबोध रखोगे तो मन कतई डाँवाडोल नहीं होगा। कितना बड़ा खतरा है आने दो, जो होगा सो देखेंगे। खतरे से घबराने वाले लोग कभी अपने जीवन में कुछ उपलब्धि नहीं करते। कुछ लोग हैं जो खतरे से खेलते हैं, वह भी ठीक नहीं है। सन्त कहते हैं- 'न खतरे से घबड़ाओ, न खतरे से खेलो अपितु खतरे से सावधान रहो' समाधान उसमें है। जो सावधान है, उसी के पास समाधान है। शंका, भविष्य की शंका, जिज्ञासामूलक शंका, भविष्य की शंका, संकट की शंका, खतरे को लेकर जो शंका है, उससे भी आप इन्हीं चार बिन्दुओं से बच सकते हैं। स्वयं की सुरक्षा की शंका। आजकल लोगों के मन में इन्सिक्युरिटी का भय बहुत रहता है। अपने आपको लोग असुरक्षित महसूस करते हैं। मेरे साथ क्या होगा, मेरे साथ क्या होगा? सन्त कहते हैं- 'क्या जरूरत है, संसार में देखा जाए तो कोई सुरक्षित नहीं और यथार्थ से पूछा जाए तो कोई असुरक्षित नहीं'। व्यवहार में तुम जिसकी सुरक्षा करना चाहते हो, वह दुनिया में कहीं सुरक्षित नहीं है। बोलो.... कोई सुरक्षित है? धन सुरक्षित है? परिजन सुरक्षित हैं? परिवार सुरक्षित है? शरीर सुरक्षित है? जीवन सुरक्षित है? कुछ भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि सब काल के प्रभाव से प्रभावित होते हैं। कर्म का चक्र चलता है और जीवन चक्र ऊपर-नीचे घूमता रहता है। उस क्रम को हम बदल नहीं सकते, वह हमारे हाथ में नहीं है और अभी तुम उसकी सुरक्षा की बात करते हो। ठीक है, तुम उसमें निमित्त बन सकते हो एक हद तक पर तुम सोचो कि मैं अपने जीवन की सारी व्यवस्थाओं को एक सी बनाए रखूँ और जीवन की आखिरी साँस तक उन्हें सुरक्षित रखूँ, 'न भूतो न भविष्यति'। तुम अपनी बात छोड़ दो, चक्रवर्ती जैसे वैभवशाली लोग भी अपने वैभव को सुरक्षित नहीं रख पाए। क्या कोई चक्रवर्ती अपने बेटे को चक्रवर्ती बनाकर गया?