दिव्य विचार: दुनियादारी की चीजें सत्य नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अपने भीतर के परम सत्य को पहचानो, आप को जानो। मैं कौन हूँ और मेरा क्या है इसे पहचानोगे तभी अपने जीवन का कल्याण कर पाओगे। पहली बात सत्य का ज्ञान बहुत मुश्किल से होता है। आदमी की स्थिति सत्य के प्रति कैसी होती है। दो जुड़वाँ भाई थे। दोनों बिल्कुल एक जैसे दिखते। रूप, रंग, हाईट, हैल्थ सब कुछ एक जैसा। बोली भी एक जैसी। एक शरारती था और दूसरा सीधा था। मुश्किल ये कि शरारती लड़का उपद्रव करके भाग जाता और सीधे वाले की पिटाई हो जाती। ऊधम करता ऊधमी और पीटा जाता सीधा। अब रोज का क्रम बन गया। बेचारा परेशान रहता। बिना कुसूर उसकी पिटाई होती। एक दिन वह बहुत खुश दिख रहा था। बोला क्या बात है भाई ! आज बहुत खुश हो। बोला आज हिसाब चुकता हो गया। पूछा क्या हिसाब चुकता हो गया? बोला आज तक मेरा भाई ऊधम करता था और पिटता मैं था। इसमें खुश होने की क्या बात? वह ऊधम करे और तुम्हें पीटा जाए तो इसमें खुश होने की बात क्या है? बोला भाई आज बात ऐसी हुई कि मरा मैं और दफना उसे दिया गया। मरा मैं और दफनाया उसे गया क्या ये सत्य है? ये लोगों के भीतर की गहन सुषुप्ति की अभिव्यक्ति है। तुम्हें अपने जीवन में सच का कुछ ज्ञान नहीं। सच को पहचानो और अपने हृदय में अवधारित करो कि दुनिया में जितनी भी चीजें हैं, भोग-विलास के साधन हैं, मकान हैं, दुकान हैं, कार है, बंगला है, फैक्ट्री है, गाड़ी है, सवारी है, सब असत्य हैं। ये रूप भी असत्य, ये रंग भी असत्य, ये भोग भी असत्य, ये विलासता के साधन भी असत्य सत्य नहीं, सब छूटने वाले हैं। टिकाऊ नहीं हैं, नष्ट हो जाने वाले कुछ भी हैं। यदि सत्य कुछ है तो मेरे भीतर का परम तत्त्व है।