दिव्य विचार: मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन बहुत कठिनाई से मिला हैं इसका सदुपयोग कीजिए। तुम्हारा कितना प्रबल पुण्य है कि तुमने मनुष्य जीवन पाया और संसार की सारी अनुकूलताएँ तुम्हें एक साथ प्राप्त हो गयी। लंबी उम्र और निरोगी काया भी पा लिया उसके बाद भी माया की छाया में फँसे हो तुम्हारा क्या होगा, विचार होना चाहिये। ये जब विचार होगा तब विवेक जगेगा, विवेक जगेगा तो वैराग्य होगा। तभी तुम्हारा ये बुढ़ापा तुम्हारे लिये वरदान बनेगा? क्या चाहते हो वरदान बनाना या बोझ ? बोझ को भी वरदान बनाया जा सकता है। रास्ता मोड़िये जो सूत्र मैंने आपको बताया अभी ये समझ कर रखिये देखिये जीवन का कितना रस आता हैं. कितना आनंद आता हैं। जो जीवन से हार गया उसका जीवन बोझ जिसके ऊपर स्वभावगत दुर्बलता हावी हो गई उसका जीवन बोझ। जिसके अंदर भय और चिंताएं सता रही उसका जीवन बोझ । लेकिन वृद्ध होने के बाद भी जिसके अंदर जिंदादिली है उसका बुढ़ापा बोझ नहीं वरदान है। जिसके अंदर सहनशीलता है उसका बुढ़ापा बोझ नहीं वरदान है। जिसके जीवन में संयम है उसका बुढ़ापा बोझ नहीं वरदान है, जिसके जीवन में स्वावलम्बन है उसका बुढ़ापा बोझ नहीं वरदान है। स्वावलम्बी बनो। मरते दम तक अपना काम अपने हाथ से करने की कोशिश करो यति तुम चाहते हो मुझे किसी को उठाना न पड़े तो जब तक उठने बैठने की ताकत है अपने काम अपने हाथ से करने के आदी बन जाओ। अगर तुम अभी अपनी आदत बिगाड़ोगे तो अंत में तुम कहीं के न रह पाओगे। अपना काम अपने हाथ से करना सीखिये। स्वावलंबी बनिये परावलंबन से अपने आपको मुक्त बनाकर के रखिये देखिये कितना आनंद आता हैं। कई ऐसे लोगों को मैंने देखा है जिनकी काया जर्जर है लेकिन अंदर से स्ट्रांग होते हैं। परमुखापेक्षी बनोगे परावलंबी बनोगे तो हताशा हावी होगी। अपेक्षाएँ रखोगे पूर्ति नहीं होगी तो मन अंदर से टूटेगा।