दिव्य विचार: शरीर के निर्माण की वैज्ञानिक व्यवस्था है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि वानप्रस्थी जीवन में अपने आपको मोड़ना शुरु कीजिए और सन्यास की भूमिका में आने के बाद अपने आपको बिल्कुल मरोड़ना शुरु कर दीजिए। मैंने देखा एक जगह गन्ने का रस निकाला जा रहा था। पहली बार रस निकालने का हुआ गन्ना डाला फट से उसमें से रस निकला बहुत ज्यादा रस निकल गया, फिर दुबारा डाला उसको मोड़ा फिर उसमें थोड़ा टाइम लगा, रस निकला, तीसरी बार उसको और मोड़ा ज्यादा टाइम लगा रस थोड़ा कम निकला और चौथी बार जब उसमें घुसाया उसमें जितना रस निकला उससे ज्यादा निकालने वाले के पसीना निकल गया। बंधुओं पहले राऊंड में बचपन है, दूसरे राऊंड में तरुणता है, तीसरे में प्रौढ़ावस्था चौथे में है वह वृद्धावस्था जिस गन्ने में अब ज्यादा रस नहीं हैं। एक सिद्धांत की बात आप सबसे कहता हूँ जैसे-जैसे उम्र ढलती है शरीर का ह्रासमेंट होता है। आप कितना भी शरीर को मेंनटेन करने की कोशिश करें हासमेंट से अपने आपको बचा नहीं सकते, हैं न सबको अनुभव ? तो शरीर का ह्रासमेंट हो रहा है, क्या करे, इसका उपाय क्या है? धवला में आचार्य वीरसेनस्वामी ने लिखा कि हमारे शरीर का जो निर्माण और विकास का क्रम है, उसकी एक बड़ी वैज्ञानिक व्यवस्था है उन्होंने लिखा है कि हमारा शरीर बनता है केवल खाने-पीने से नहीं खाना पीना तो इसका बहुत छोटा सा रोल है हमारे शरीर में हम प्रतिसमय परमाणुओं को ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं उससे हमारा शरीर मेनटेन होता है। एक समय में हम ग्रहण ज्यादा करते हैं छोड़ते कम है कलेक्शन ज्यादा होता है और डिसोसिएसन कम होता है। शास्त्र की भाषा में उसे कहते हैं। संघातन ज्यादा होता है परिसातन कम होता हैं, जैसे बचपन में ग्रोथ बहुत तेजी से हैं यानि कलेक्शन खूब है डिसोसिएसन कम । ये विकास का लक्षण है। अर्थव्यवस्था के अनुसार अर्निंग अच्छी है और खर्चा कम है उसका तो ग्रोथ बढ़ेगा।