पर्युषण पर्व : आज उत्तम संयम

पर्युषण पर्व : आज उत्तम संयम
इच्छाओं पर नियंत्रण ही आत्मबल का मूल- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
वर्तमान युग की विडंबना
आज का युग 'इच्छाओं का विस्फोट' है। विज्ञापन, सोशल मीडिया, उपभोग की संस्कृति और प्रतिस्पर्धा ने व्यक्ति की ज़रूरतों को लालसाओं में बदल दिया है। पहले जो विलासिता थी, आज वह आवश्यकता मानी जाती है। हर व्यक्ति और विशेषकर युवा वर्ग एक अदृश्य होड़ में दौड़ रहा है, जहाँ कभी गाड़ी चाहिए, तो कभी गैजेट, कभी रिश्ते बदलने की चाह, तो कभी पहचान और नाम पाने की तड़प । इस अनियंत्रित इच्छा-चक्र ने जीवन को अशांत, असंतुलित और खोखला बना दिया है।
संयम- एक खोया हुआ मूल्य
संयम केवल खान-पान या वाणी तक सीमित नहीं है, यह हमारी सोच, दृष्टिकोण, समय उपयोग, रिश्तों, और भावनाओं तक फैला हुआ जीवन-मूल्य है। संयम का अर्थ है "अपने मन के विकारों पर नियंत्रण और विवेकपूर्वक जीवन जीना।" जैन दर्शन में "उत्तम संयम" आत्मा की रक्षा का कवच है -जो मनुष्य को पशुत्व से देवत्व की ओर ले जाता है।
संयम से आत्मबल का निर्माण
जब व्यक्ति संयम का अभ्यास करता है, तब वह धीरे-धीरे अपने मन के भीतर एक शक्ति को अनुभव करता है - उसे कहते हैं "आत्मबल"। संयम आत्मा की ऊर्जा को बाहर बिखरने से रोककर भीतर केंद्रित करता है। संयमी व्यक्ति निर्णयों में दूढ़ होता है, इच्छाओं से गुलाम नहीं बल्कि उनका स्वामी होता है।
संयम को जीवन में कैसे उतारें?
आत्म-नियंत्रण को जीवन में उतारने के लिए कुछ सरल अभ्यास किए जा सकते हैं डिजिटल संयम रखें- स्क्रीन टाइम सीमित करें। भोजन संयम- स्वाद से नहीं, स्वास्थ्य से जुड़ा भोजन करें।
वाणी संयम- प्रतिक्रिया देने से पहले मौन और विवेक का अभ्यास करें।
आज का संकल्प
आज जब पूरी दुनिया भोगवाद की अंधी दौड़ में भाग रही है, तब जैन धर्म का 'उत्तम संयम' जीवन को दिशा देने वाला प्रकाशस्तंभ है। संयम कोई दमन नहीं, बल्कि जागरूकता से जीने की कला है।
"संयम मेरा आभूषण है, मैं इससे अपने आत्मबल को जगाऊँगा।"