पर्युषण पर्व : आज उत्तम शौच

पर्युषण पर्व : आज उत्तम शौच
आंतरिक स्वच्छता से ही निर्मल समाज संभव है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
शौच का वास्तविक अर्थ
हम सभी स्वच्छता के महत्त्व को बाह्य स्तर पर समझते हैं - शरीर, वस्त्र, घर और परिवेश को स्वच्छ बनाए रखने की आदत सभ्य समाज की पहचान है। लेकिन जैन दर्शन में 'शौच' का अर्थ केवल बाहरी सफाई नहीं, अपितु अंतरात्मा की निर्मलता और आत्मवृत्तियों की पवित्रता है। दशलक्षण धर्म का चौथा धर्म "उत्तम शौच" हमें आत्मशुद्धि की ओर ले जाने वाला एक अमूल्य मार्ग है।
"प्रकर्षप्राप्त लोभात् निवृत्ति शौचम" - जिसके जीवन में लोभ की चरम सीमा से भी निवृत्ति हो गई हो, वही शुद्ध कहलाने योग्य है।
आज की दुनिया में शौच धर्म क्यों?
आज हम भौतिक रूप से जितने समृद्ध हुए हैं, मानसिक और भावनात्मक रूप से उतने ही प्रदूषित होते जा रहे हैं। मोबाइल, सोशल मीडिया, भोगवादी विज्ञापन, अनावश्यक प्रतिस्पर्धा और अपार लालसा यह सब
हमारी चेतना को कलुषित कर रहे हैं। जब तक मन लोभ, तुलना, ईष्या, अहंकार और हीनता से गंदा रहेगा, तब तक किसी भी बाहरी सफाई का कोई अर्थ नहीं।
वैचारिक, सामाजिक और भावनात्मक गंदगी
यह मानसिक मलिनता ही आज के युग की समस्याओं -अवसाद, असंतोष, अपराध, पारिवारिक विघटन और पर्यावरण दोहन - की जड़ है। विचारों में अशुद्धि, भावनाओं में अशुद्धि, और दृष्टिकोण में अशुद्धि हमारे जीवन को दूषित करती है।
शौच धर्म को जीवन में कैसे उतारें?
मन, आत्मा और दृष्टिकोण की सफाई के लिए कुछ सरल अभ्यास किए जा सकते हैं डिजिटल डिटॉक्स करें- तकनीक से दूर रहकर स्वयं से जुड़ें। स्वभाव निरीक्षण करें - अपने क्रोध, लोभ, और अहं को पहचानें।
संवाद में स्वच्छता रखें- कटुता, शिकायत और निंदा से बचें।
आज का संकल्प
उत्तम शौच धर्म हमें याद दिलाता है कि असली स्वच्छता वह है जो भीतर से आती है। जब मन लोभ से मुक्त, हृदय द्वेष से रहित और दृष्टि करुणा से युक्त हो जाती है, तभी मनुष्य 卐शुद्ध卐 कहलाने योग्य बनता है। आज के युग में यह धर्म केवल एक आध्यात्मिक आदर्श नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी समाधान है भीतर से बाहर तक स्वच्छता लाने का। -