दिव्य विचार: जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि कहाँ जा रहे है, अपने आपको संभालने की कोशिश कीजिए। जीवन की दिशा बदलने की कोशिश कीजिए, लक्ष्य रखिये कि मेरा अंत समाधि पूर्वक हो, मैं इस दुनिया से जाऊँ तो समाधि के साथ जाऊँ। हँसते-हँसते देह त्यागूँ। णमोकार जपते हुए गुरुचरणों में मेरे प्राण निकले । अस्पताल में आहें भरते हुए मुझे न जाना पड़े। तो इसी ढंग से जीना शुरु कीजिए। जिनकी जिंदगी ढंग की होती हैं उनकी मौत भी ढंग की होती है। जिनकी जिंदगी बेढंगी होगी उनकी मौत भी बेढंगी होगी। रिटायरमेंट की उम्र पार करने के बाद संयम-साधना में लगिये, समाज सेवा में रुचि है तो समाज सेवा में लगिये, लेकिन समाजसेवा को भी अपनी साधना का अंग मानकर के कीजिए उसे सत्ता का अधिष्ठान बनाकर मत कीजिए। यदि सत्ता का अधिष्ठान बनाकर के समाजसेवा करोगे, राग-द्वेष और दाँव-पेच होंगे वहां घात-प्रतिघात होगा । वहाँ अनेक प्रकार की तिकड़म होगी। आर्त-रौद्र ध्यान का कारण बनेगा तुम्हारी दुर्गति का भी हेतु बन सकता है। और साधना या सेवा का अंग मानकर के करोगे सेवा का मन बनाकर के करोगे तो तुम्हारे मन में एक अहोभाव होगा और उसका तुम्हें लाभ भी मिलेगा। मैं समाज में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह कहता हूँ कि समाज सेवा का काम सेवा का अधिष्ठान मानकर के करो, श्रद्धा की भावना से करो उसे एक साधना का अंग मानकर के करो। सत्ता का अधिष्ठान मत बनने दो। समाज के उन लोगो से कहना चाहता हूँ कि जो समाज सेवा का काम पवित्र मन से करते हैं उनके प्रति श्रद्धा की भावना रखो। आलोचना मत करो उनके गुणों को देखने की कोशिश करो उन्हें प्रोत्साहित करो। उनके मन में आपके प्रति पॉजीटिव व्यू बन जाए। वे समाज की सेवा जो उनकी दूसरी तरफ से उनकी आलोचना ही होती है। समर्पण की भावना से अपना काम करो कृतज्ञता का भाव तुम्हारी तरफ से उनके प्रति जाना चाहिये तब हमारे समाज संस्कृति की परंपरा आगे बढ़ेगी और अपना वास्तविक जीवन उत्थान कर सकेंगे।