दिव्य विचार: बच्चों को अच्छे संस्कार दें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अच्छे संस्कारों का आरोपण गर्भ काल से ही होना चाहिये। यदि आप अपनी संतान को गर्भ की अवधि में अच्छे संस्कार देंगे तो आपसे जन्म लेने वाली संतान पूरी मानवता की शोभा बढ़ायेगा, लाज बढ़ायेगा। गर्भावस्था में स्त्री ब्रह्मचर्य से रहे -कुरल काव्य में लिखा है कि संतान को जन्म देना ही सब कुछ नहीं है, जो लोग संतान को जन्म देने के बाद योग्य पुरुषों के बीच बैठने योग्य नहीं बनाते वे एक प्रकार का अपराध करते हैं। आपने संतान को जन्म दिया है तो जन्म देने के बाद ऐसे संस्कार देने के लिये गर्भ से ही सावधानी रखें। गर्भ में ही ऐसे संस्कार दें। हमारे शास्त्रों के विधानानुसार यदि कोई स्त्री गर्भवती हो जाए तो जितने दिन तक बच्चा पेट में है, जब तक उसका जन्म न हो जाए और जन्म के चालीस दिन बाद तक जब तक माँ का सूतक समाप्त न हो, तब तक उस दंपत्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। अपने मन में दुर्विचारों को हावी नहीं होने देना चाहिये । अपना जीवन आमोद-प्रमोद, ललित कलाओं के साथ बिताना चाहिये। महापुरुषों की जीवनगाथा पढ़नी चाहिये, जिससे पेट में पलने वाले बच्चे में शौर्य और पराक्रम के संस्कार पड़े। ज्ञान और विज्ञान की भावनाएँ उसके अंतस में जागृत हो। लेकिन आजकल इन बातों की घोर उपेक्षाएँ होने लगी है। लोग अनर्गल प्रवृत्तियाँ करते हैं। शुरुआत से ही मामला गड़बड़ होता है। कहते हैं जब मैन्यूफेक्चरिंग डिफेक्ट हो जाए तो प्रोडेक्ट का कोई भरोसा नहीं। वह मैन्यूफेक्चरिंग डिफेक्ट हैं उसकी तरफ ध्यान देना चाहिये। संतान को जन्म देना कोरी सांसारिक क्रिया नहीं, एक बहुत बड़ी जबावदारी हैं। एक साधना है। एक तपस्या करो ताकि मेरे द्वारा जनी गई संतान सुसंतान बने और पूरी की पूरी मानवता का आदर्श बन पाए। ये सतत प्रयास होना चाहिये। गर्भ की अवधि से ही सुसंस्कार डालने की बात है। उसके बाद जब बच्चा जन्म ले, जन्म लेने के उपरांत पूरे जीवन उसके संस्कारों का ध्यान रखें। उसके ऊपर कोई दूषित संस्कार न पड़ पाए ।