दिव्य विचार: समर्थ हो तो दूसरों का सहारा बनो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: समर्थ हो तो दूसरों का सहारा बनो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि किसी पुण्य के योग से आज तुम्हारे पास सब प्रकार की अनुकूलताएँ है। तुम समर्थ हो तो दूसरों का सहारा बनो, समर्थ होकर किसी का सहारा मत छीनो, दुनिया में प्रायः देखने में आता है कि समर्थ बनने के बाद सहारा बनने वाले लोग कम हैं और सहारा छीनने वाले लोग बहुत ज्यादा हैं। जो लोग दूसरों का सहारा बनते हैं, दुनिया उनको माथे पर बिठाती है। जो लोग दूसरों का सहारा छीनते हैं, वह एक दिन खुद बेसहारा बन जाते हैं। गिरना और गिराना इन दोनों बातों को अपने दिमाग में बैठा लीजिए। मैं गिरूँ नहीं और गिर जाऊँ तो घबराऊँ नहीं, क्योंकि गिरने के बाद ही चढ़ने की शुरुआत होती है। कोई दूसरा गिर जाए तो उसका मजाक न उड़ाएँ, उसे अपनी नजरों से न गिराएँ। सोचो कि एक दिन मैं भी तो ऐसे ही गिरा था। दूसरी बात मैं कभी किसी को नहीं गिराऊँगा, किसी को हतोत्साहित नहीं करूँगा। तीसरी बात है सम्हलना । अपने आपको सम्हालकर रखो। जो खुद सम्हला है, वही दूसरों को सम्हाल पाएगा। स्थितीकरण अंग को बहुत व्यापक सन्दर्भ में समझने की जरूरत है। तुम्हारा सम्यग्दर्शन सम्हला हुआ होगा तो तुम सबके सम्यक्त्व को सम्हाल लोगे और तुम्हारा ही पता-ठिकाना नहीं तो भगवान् ही मालिक है। जो उन्मार्ग की ओर जाते हुए अपने मन को रोककर सन्मार्ग में लगाता है, उसे ही स्थितीकरण अंग से युक्त सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। यानी जो अपने आपकी सम्हाल करता है, सच्चे अर्थों में वही सम्यग्दृष्टि है, वही दूसरों को सम्हालने में समर्थ होता है। अपने आपको सम्हालो। मेरा रत्नत्रय कहीं से छिन्न भिन्न न हो, मेरा मोक्षमार्ग कहीं से प्रभावित न हो, मैं सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र के मार्ग से रंचमात्र भी हिलूं नहीं, यह सावधानी आपके अंदर होनी चाहिए। सब कुछ उलट-पुलट हो जाए, पर मेरी निष्ठा न डगमगाए। अपने आपको सम्हालो, खुद सम्हलो, जब खुद सम्हलोगे तभी सामने वालो को सम्हाल सकोगे।