दिव्य विचार: कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखो - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बन्द हो जाए तो भी आनन्द । तपस्या है ये। कर्म- सिद्धान्त पर भरोसा रखो। अनुकूल का भी स्वागत करो, प्रतिकूल का भी स्वागत करो। अच्छे का भी साथ दो, बुरे को भी स्वीकार करो। कर सकते हो? महाराज ! अच्छे में तो बहुत अच्छा लगता है पर बुरा आता है तो बुरा लगने लगता है। आप तो कुछ ऐसा बताओ कि बुरा आए ही नहीं। ध्यान रखो ! सन्त कहते हैं बुरा न आए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं, लेकिन बुरा भी तुम्हें अच्छा लगने लगे, ऐसी व्यवस्था है। बुरे को टालने की ताकत धर्म के पास नहीं पर बुरे को अच्छा बनाने की सामर्थ्य धर्म के पास है। यदि अपना चिन्तन बदल लो तो बुरा भी अच्छा लगेगा। एक उदाहरण देता हूँ। आपके घर में कई मेहमान आते हैं, आप सबका स्वागत करते हो। उदाहरण के लिए बताऊँ घर में जमाई (दामाद) आता है, और घर में चाचा भी आते हैं। जिस दिन जमाई आता है उस दिन टेंशन आता है कि नहीं आता? आता है। जिस दिन जमाई आता है उस दिन आपको अतिरिक्त तैयारी करनी पडती है। चार प्रकार की मिठाईयाँ बनानी पड़ती हैं, पाँच प्रकार की सब्जियाँ बनानी पड़ती हैं, उसके स्वागत-सत्कार की व्यवस्था करनी पडती है और जाते समय टीका लगाकर कुछ भेंट भी देना पड़ता है। जमाई है ही ऐसा। नौ ग्रह का नाम तो आपने सुना है दसवाँ ग्रह है जमाई। उसका स्वभाव भी समझ लो। हमेशा वक्री रहता है, हमेशा क्रूर रहता है, हमेशा मान और धन को हरने वाला होता है और हमेशा कन्या राशि में बैठा रहता है। जमाई आता है तो आप इस प्रकार उसका स्वागत करते हो और घर में चाचा आएँ तो चाचा के आने पर आपको कुछ करना पड़ता है? कुछ नहीं! घर की सामान्य प्रक्रिया है वही खिला दो-पिला दो। चाचा एडजस्ट हो गए, आराम से चले जाते है और जाते समय कुछ देकर जाते है जमाई लेकर जाता है और चाचा देकर जाते हैं। स्वागत दोनो का आप करते है। मैं आपसे यही कहता हूँ जब दुख आए तो समझ लो जमाई आया है और सुख आए तो समझ लो चाचाा आए हैं।