दिव्य विचार: हर किसी को वचन मत देना- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आजकल लोगों के कमिटमेंट का कोई अता- पता नहीं। पल-पल में व्यक्ति की जिह्वा के अर्थ बदल जाते हैं, भाषा बदल जाती है। अपनी कही बात से कब पलट जाएं कोई पता नहीं। जैसे नेताओं के बयान रोज बदलते हैं वैसे ही लोगों के भी बदल जाते हैं। मनुष्य के जीवन में प्रामाणिकता होनी चाहिए। जो मैंने कह दिया सो कह दिया। अपने वचन को कभी काटो मत। यदि तुम वाणी के स्तर पर सत्य प्रतिष्ठापित करना चाहते हो तो जिस किसी को भी वचन मत देना। बहुत सारे लड़कियाँ और लड़के कहते हैं कि हमने अगले को कमिटमेंट कर दिया। भावुकता में किए गए कमिटमेंट बेकार होते हैं। ऐसे कमिटमेंट कभी मत करना। हर किसी के सामने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर मत करना। हर किसी को वचन मत देना नहीं तो ठगे जाओगे। योग्य व्यक्तियों को वचन दो। या तो वचन दो ही नहीं और यदि वचन दे दिया तो उसको दृढ़ता से निभाओ तब तुम्हारे जीवन में वाणी का सत्य प्रतिष्ठित हो सकेगा। तीसरे नम्बर पर व्यवहार का सत्य। सत्याचरण की बात हो रही है। अपने जीवन व्यवहार में सत्य का आचरण करने का मतलब है छल, फरेब, धोखा, विश्वासघात, एवं चोरी के कार्य से अपने आप को बचाओ। अपने आप को इन सब चीजों से बचाओगे तब तुम्हारे व्यवहार के स्तर पर सत्य होगा। जो व्यक्ति थोड़ी-थोड़ी बातों में अपना ईमान बेच दे वह व्यवहार में सच्चा नहीं कहला सकता। जो थोड़ी-थोड़ी सी बातों में बेईमान बन जाए वह व्यवहार में सत्याचरणी नहीं है। वह सच्चे अर्थों में धर्मात्मा ही नहीं है। धर्मात्मा होने का मतलब है सत्य का आचरणी होना। सत्य का आचरणी वही हो सकता है जो जीवन की सच्चाई को जानते हुए असत्य आचरण से विमुख होता है। ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे तुम्हें कभी अपमानित होना पड़े, ऐसा कोई कार्य मत करो जिससे तुम्हें लोक-निंदा का पात्र बनना पड़े।