दिव्य विचार: सारा संसार पाप और पुण्य का खेल है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: सारा संसार पाप और पुण्य का खेल है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मैंने भी सोचा- यह सारा संसार पाप और पुण्य का ही तो खेल है। हमारे जीवन में जो कुछ भी घटता है, वह पाप और पुण्य के निमित्त से ही घटता है। कभी पुण्य का योग होता है तो हमारा जीवन शिखर पर पहुँच जाता है और पाप का प्रकोप आता है तो हम सतह पर आ जाते हैं। यह बड़ा विचित्र खेल है। जो मनुष्य पुण्य-पाप के इस रहस्य को जानता है, उसके जीवन में सहजता और स्थिरता आ जाती है और जो इस रहस्य को नहीं जान पाता, वह प्रतिपल आकुलचित्त बना रहता है। आज बात पुण्य की है। पुण्य की चर्चा सुनते ही लोगों के मुँह में पानी आ जाता है। पाप कोई नहीं चाहता है, पुण्य हर कोई चाहता है पर मुश्किल यह है कि पुण्य करना कोई नहीं चाहता और पाप छोड़ना कोई नहीं चाहता। यह जो विचित्रता है, जब तक हम पुण्य करने के लिए उत्साहित नहीं होंगे, पुण्य-लाभ नहीं हो सकेगा। पुण्य-पाप के सन्दर्भ में बहुत सारी बातें करनी हैं। आज चार बातों के माध्यम से मैं अपनी बात प्रारम्भ कर रहा हूँ। सबसे पहली बात- पुण्य कमाना । क्या? पुण्य कमाना। पुण्य कमाने का मतलब? कमाना- किसको बोलते हैं? आप लोग कमाते हो कि नहीं कमाते हो? क्या कमाते हो? पैसा, वह भी 'प' से है, पैसा कमाते हैं आपको कब दिखता है कि मैंने पैसा कमाया? बोलो... जब इकट्ठा हो जाता है तो आपको अपना फाइनेंशियल ग्राफ दिखने लगता है कि नहीं, यह हमने कमाया। हर वर्ष आपकी बैलेंस शीट आपको बताती है कि आपने इस साल इतना कमाया और उसके हिसाब से आप अपनी नेटवर्थ भी घोषित करते हो, यह हमारी स्थिति है। मैं तुमसे केवल इतना कहता हूँ- तुम्हारे द्वारा कमाया गया पैसा तुम्हें दिखाई पड़ता है, तुम्हारे द्वारा कमाया जाने वाला पुण्य कभी तुम्हें दिखा ?