दिव्य विचार: कभी किसी के विरूद्ध षड़यंत्र मत करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि एक दिन एक सज्जन मेरे पास आए। वे बहुत घबड़ाए हुए थे। उन्होंने कहा- महाराज। मुझे एक पहचान वाले व्यक्ति ने कहा है कि थोड़ा सावधान रहना, आपके विरुद्ध एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र रचा जा रहा है। मैने कहा- ठीक बात है, किसी ने कहा होगा, लेकिन आप इतने घबराए हुए क्यों हो? उसने जो आपसे कहा है, उसका कोई प्रमाण प्रस्तुत किया? वह बोले- कि उसकी बातों को सुनकर मुझे लगता है कहीं मेरे साथ कोई साजिश तो नहीं रची जा रही? अगर ऐसा हो गया तो मैं क्या करूँगा? मैंने कहा- भैया ! घबड़ाने से क्या होगा? कोई तुम्हारे विरुद्ध कितना भी षड्यन्त्र रचे, यदि तुम ठीक हो तो तुम्हारा बाल-बाँका भी नहीं होगा। तुम्हारा कर्म ठीक है तो तुम्हारा कोई कुछ गलत नही कर सकता और कर्म खोटे होंगे तो तुम कितने भी फूंक-फूंक कर कदम रखो, कभी भी, किसी के भी षड्यन्त्र के शिकार हो जाओगे। आज बात 'ष' की है, ष से षड्यन्त्र की बात मैं आप सबसे कर रहा हूँ। लोगों के मन में इस बात को लेकर बड़ी चिन्ता होती है कि कोई मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र न रच दे, चिन्ता कम शंका अधिक होती है। चार बातें षड्यन्त्र के सन्दर्भ में आज आप सबसे कहूँगा। पहली बात - षड्यन्त्र रचना। आज के समय में यह बड़ा कुचक्र है, दुरभिसन्धि है। लोग एक दूसरे के विरुद्ध बहुत तेजी से षड्यन्त्र रचते हैं, षड्यन्त्र में सामने वाले को फँसाते है और उसका सत्यानाश कर देते हैं, यह घोर अनैतिक कर्म है। सन्त कहते हैं- जीवन में कभी किसी के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र मत रचना क्योंकि इसका परिणाम तुम्हें आगे-पीछे जरूर भुगतना पड़ेगा। लेकिन लोग अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए, ईर्ष्या या विद्वेष के लिए, अपने अहं की पुष्टि के लिए एक दूसरे के विरुद्ध गहरा षड्यन्त्र, साजिश या कुचक्र रचते हैं। अपने भीतर झांक करके देखो कि मैंने अपने जीवन में कभी किसी के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र तो नहीं किया और अगर किया है तो मुझे बहुत सावधान होने की जरूरत है और आज से अपने जीवन की धारा को परिवर्तित करने की आवश्यकता है।