मौसम की मार: समय से पहले पका गेहूं, न चमक न अपेक्षित उत्पादन
सतना | जिले में इस बार गेहूं और चने की फसल जलवायु के विपरीत प्रभाव (फोर्स मेच्युरिटी) का शिकार हो गई है। इस वजह से न सिर्फ गेहूं और चने का दाना कमजोर है बल्कि चमक भी गायब है। इसका उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। इसे बच्चे के जन्म के उदाहरण से समझ सकते हैं। जैसे नौ महीने के पहले जन्म लेने वाला बच्चा प्री-मेच्योर और थोड़ा कमजोर माना जाता है, बिल्कुल वैसे ही फसल चक्र पूरा होने के पहले ही फसल पकने की वजह से दाना कमजोर हो गया है।
इस बार जिले में 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर रकबे में बोनी हुई थी जिसमें 310 में गेहूं तथा 35 हजार हेक्टेयर चना बोया गया था। होली के समय तीन दिन की भीषण गर्मी और तपन का प्रभाव यह हुआ कि अगेती और पछेती तथा कम और लम्बे अवधि वाली हर तरह की फसले पक कर तैयार हो गईं। किसानों का कहना है कि 20 से 25 फीसदी तक उत्पादन प्रभावित हुआ है। इस बार के लिये कृषि विभाग की ओर से पिछले दो सालों की तुलना में सभी फसलों में इस बार 10 फीसदी अधिक उत्पादन का जो अनुमान लगाया गया था वह फेल होता नजर आ रहा है।
अचानक तल्ख हुए मौसम के तेवर
दरअसल, सतना समेत विंध्य अंचल में इस साल फरवरी से ही तापमान में वृद्धि शुरू हो गई थी। पिछले 15 सालों में यह फरवरी सबसे गर्म रही। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक कोई पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय नहीं होने की वजह से पश्चिम से आने वाली गर्म हवाएं गुजरात और राजस्थान होते हुए प्रदेश पहुंच रही थीं। यह क्रम अभी भी जारी है। खासकर मार्च के आखिरी 4 दिन तो अचानक न केवल दिन का पारा 40 के पार चला गया बल्कि रात भी 25 डिग्री के आंकड़े को छूने लगी थी। इसका सीधा असर गेहूं की फसल पर देखने को मिला। हालत यह हुई कि मार्च के दूसरे पखवाड़े गेहूं की जो फसल हरी थी और बालियों में दाने मजबूत हो रहे थे होली आते ही वह फसल पककर तैयार हो गई।
मौसम में हुए इस परिवर्तन के कारण रबी की फसल 120 दिन से 15 दिन पहले ही पक गई है। कृषि वैज्ञानिकों का मत है कि अचानक से तीव्र गर्मी पड़ने के कारण गेहूं का दाना पकने की जगह सूख गया है, क्योंकि गेहूं की फसल को ठंडक चाहिए होती है। दाना जब विकसित हो जाता है तो हल्की गर्मी के बीच फसल पक जाती है, लेकिन इस बार दाना विकसित होने से पहले ही गर्मी पड़ने लगी, इस वजह से अधपकी फसल पक गई।
उत्पादन में दिखने लगी कमी
इस संबंध में जिले के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. वेदप्रकाश सिंह के मुताबिक ऐसे मौसम में फसल की जड़ों में पोटाश और आॅर्गेनिक कार्बन की कमी हो जाती है। आॅर्गेनिक कार्बन पोषक तत्वों के लिए रिजरवॉयर का काम करता है। वही कम होगा तो फसल को पोषण नहीं मिलेगा और फसल का उत्पादन खराब होगा। इससे फसलों के उत्पादन में भी कमी आएगी। इस साल भी कुछ ऐसी ही स्थिति से गेहूं की फसलों को गुजरना पड़ा है।
सामान्य से एक डिग्री अधिक तापमान भी बढ़ता है तो प्रति हेक्टेयर दो क्विंटल फसल प्रभावित होती है। इस तरह सामान्य से पांच डिग्री अधिक तापमान होने पर प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल फसल जल्दी सूख सकती है। एक-डेढ़ दशक पहले भी इस तरह की स्थिति बनी थी। सोहावल के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी विष्णु त्रिपाठी भी स्वीकार करते हैं कि इस समय अंचल में गेहूं की कटाई युद्धस्तर पर चल रही है। फसल कटाई के आंकड़े तो बाद में आएंगे पर मौजूदा समय लेट बोनी करने वाले अधिकांश किसान इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि दाना पतला है और उसमें चमक भी कमजोर है। इसका प्रभाव भी उत्पादन पर पड़ना तय है।