दिव्य विचार: कभी किसी के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार न करें-  मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: कभी किसी के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार न करें-  मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि एक बात मैं आप से कहना चाह रहा हूँ वो यह लिखा है कि आचार्य की विशेषता में एक शब्द आता है- गणस्य- सन्तुष्टिकरान- एक कुशल आचार्य कौन होते हैं? जो पूरे संघ को संतुष्ट करके रखते हैं। संघ को संतुष्ट करके रखे मतलब पूरे संघ में समान व्यवहार रखे। ऐसा नहीं होता हैं। समान व्यवहार नहीं होता हैं लेकिन संघ का हर शिष्य गुरु के प्रति समर्पित होता हैं। संतुष्ट रहता हैं गुरु से संतुष्ट रहता हैं। क्योंकि उसे यह लगता हैं कि मेरे गुरु सबसे ज्यादा मुझे चाहते हैं। मेरे गुरु मेरे हैं यह बात सबके हृदय में बैठ जाती है। एक पिता की चार संतान हैं और चारों संतान की अलग-अलग योग्यता हैं, सबका अपना-अपना व्यवहार हैं, फिर भी पिता चाहे तो चारों के दिल में अपना स्थाई स्थान बना सकता हैं। चारों को संतुष्ट कर सकता हैं। चार बहुऐं है सास सबको संतुष्ट कर सकती हैं। यह चीजे सब में बराबर हो जाए तो जीवन में प्रेम अपने आप पनप सकता हैं। आपको ज्यादा कहने और सोचने की जरूरत नहीं होगी। तो आप कही भी कभी भी किसी व्यक्ति के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार न करे। तीन भाईयों का परिवार था और तीन भाईयों के परिवार में बड़ा प्रेम था, एकता थी। एक भाई जो लाता सबके लिये बराबर होता। एक दिन भाई फल लेकर आया और उसके हाथ में आम के फल थे। उसका बेटा आगे आया और भाई का बेटा भी सामने था। कहा चाचा फल चाहिये। भाई ने फल को बढ़ाते समय अपने बेटे को बड़ा फल दिया और भाई के बेटे को छोटा फल दिया। फल देते ही उसे रिलाईज हुआ, मेरे मन में अब पक्षपात आ गया। मुझे तो जो हाथ में था वो सामने बढ़ाना था। लेकिन मैंने मेरे बेटे को बड़ा और दूसरे को छोटा फल दिया। ये बड़े छोटे का भेद आ गया। अब पक्षपात का बीज मेरे मन में पड़ गया तो यह प्रेम नहीं टिक पायेगा। उसी क्षण अपने बड़े भाई से जाकर निवेदन किया भैया माफ करना, आगे ऐसा पक्षपात मेरे मन में न आए। मैं चाहता हूँ हमारे परिवार मे वर्षों से प्रेम बना हुआ हैं वही प्रेम चलता रहे। इसमें किसी प्रकार का खण्डन ना हो। मुझसे गलती हो गई।